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Friday, 18 April 2014

किताबों में लोकप्रिय मोदी

16लोकसभा चुनाव सिर पर हैं. सियासी बिसात पर हर तरह की चालें चली जा रही हैं. सियासत के इस खेल में प्यादे से लेकर वजीर एवं बादशाह तक पूरी तरह से मशरूफ हो चुके हैं. हर दल किसी न किसी तरह अपनी गोटी फिट करना चाह रहा है. इस बार का लोकसभा चुनाव कई मायनों में अब तक हुए चुनाव से अलग है. इस चुनाव में सोशल मीडिया राजनीतिक दलों के प्रचार के एक बड़े प्लेटफॉर्म के तौर पर उभर कर सामने आया है. भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी एवं आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय हैं और दोनों अपने मतदाताओं से इसके जरिए लगातार संपर्क में रहते हैं. सोशल मीडिया के एक प्लेटफॉर्म ट्वीटर पर तो नरेंद्र मोदी सभी दलों के नेताओं से काफी आगे हैं. ट्वीटर पर उनके तक़रीबन छत्तीस लाख फॉलोवर हैं, जबकि अरविंद केजरीवाल के लगभग सोलह लाख. अभी हाल में जारी हुए आंकड़ों के हिसाब से सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर मेंशनिंग में नरेंद्र मोदी अपने प्रतिद्वंद्वी राजनेताओं से काफी आगे हैं.

गूगल सर्च में भी नरेंद्र मोदी अपनी बढ़त बनाए हुए हैं. नरेंद्र मोदी प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में तो छाए ही हुए हैं, लेकिन अगर हम प्रकाशन की दुनिया की बात करें, तो वहां भी नरेद्र मोदी का दबदबा नज़र आता है. किसी भी ऑनलाइन बुक स्टोर में आप किताबों के सेक्शन में जाकर नरेंद्र मोदी सर्च करेंगे, तो कम से कम तीन पेज खुलेंगे और आपके सामने मोदी पर लिखी दर्जनों किताबें होंगी. हर भाषा और अलग-अलग मूल्य की. यही हाल रेलवे स्टेशन पर मौजूद किताबों की दुकान से लेकर पॉश इलाके के बुक स्टोर का है. हर जगह पाठकों की रुचि और उनके खर्च करने की क्षमता के मद्देनज़र नरेंद्र मोदी पर लिखी किताबें मौजूद हैं. यह भी नहीं है कि मोदी पर लिखी किताबें किसी एक भाषा में प्रकाशित हो रही हों. हर भाषा के लेखक ने मोदी के इर्द- गिर्द किताबें लिखीं. यहां तक सुदूर दक्षिण में तमिल में नरेंद्र मोदी की जीवनी छपी है और जानकारों के मुताबिक, तमिल में भी यह किताब खूब बिक रही है.

ऐसा भी नहीं है कि स़िर्फ मोदी के प्रशंसकों ने ही किताबें लिखी हैं, उनके धुर विरोधियों ने भी मोदी और उनकी राजनीति को केंद्र में रखकर किताबें लिखी हैं. हिंदी के लेखक जगदीश्‍वर चतुर्वेदी ने मोदी की फासीवादी रणनीति को अपनी किताब-नरेंद्र मोदी और फासीवादी प्रचार कला में परखा है. मोदी और उनकी नीतियों की आलोचनात्मक किताबें संख्या के लिहाज से बेहद कम हैं. अब सवाल यही उठता है कि लोकसभा चुनाव के पहले बाज़ार में मोदी और उन पर केंद्रित किताबों की बाढ़ क्यों आ गई है? इन वजहों की पड़ताल के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा. लोकसभा चुनाव की आहट को महसूस करते ही नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय फलक पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए यत्न शुरू कर दिए थे. हम मान सकते हैं कि मोदी की सद्भावना यात्रा से इसकी शुरुआत हुई थी. मोदी की टीम ने उनके इमेज मेकओवर को लेकर खासी रणनीति बनाई थी.

2002 में गुजरात में हुए गोधरा कांड और उसके बाद के सांप्रदायिक दंगों की वजह से नरेंद्र मोदी मीडिया के निशाने पर रहे हैं. उनके हर क़दम को मीडिया ने कसौटी पर कसा. इसके अलावा मोदी का विवादित व्यक्तित्व, आलोचकों का उन पर तानाशाह होने का आरोप, समर्थकों द्वारा श्रमपूर्वक बनाई गई उनकी विकास पुरुष की छवि और उनके पारिवारिक जीवन के बारे में चल रही किंवदंतियों ने भी लेखकों को उन पर लिखने के लिए कच्चा माल मुहैया कराया. कई लेखकों ने श्रमपूर्वक नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व और उनके कामों को व्याख्यायित करने का प्रयास किया, जिसकी वजह से उसे इस शख्सियत को समझने के लिए एक गंभीर प्रयास माना गया. 2013 में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय की किताब-नरेंद्र मोदी द मैन द टाइम्स छपकर आई, तो लोगों ने बहुत उत्सुकता से उसे पढ़ा. नीलांजन की इस किताब में भी मोदी के पिता की चाय की दुकान और उनके चाय बेचने का जिक्र है.

किताब में बताया गया है कि मोदी का बचपन किस तरह से कठिनाइयों में बीता. बाद में जब मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में आए, तो पहले उन्हें हेडगेवार भवन में दफ्तर की साफ़-सफाई का काम दिया गया और जब वहां के लोगों को लगा कि मोदी अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह सफलतापूर्वक कर सकते हैं, तो उन्हें चाय बनाने की ज़िम्मेदारी दी गई. नीलांजन ने इस किताब में मोदी से जुड़े कई व्यक्तिगत एवं दिलचस्प प्रसंग लिखे हैं, लेकिन मोदी के जीवन का एक लंबा कालखंड इस किताब में नहीं है. इस किताब से नीलांजन मुखोपाध्याय को काफी प्रसिद्धि मिली. बाद में तो मोदी का बचपन में चाय बेचना उनके प्रचार का एक हिस्सा भी बना. कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर की बदजुबानी के बाद मोदी ने पूरे देश में चाय पर चर्चा जैसा कार्यक्रम तक शुरू कर दिया.

नीलांजन की किताब छपने के आसपास ही वरिष्ठ पत्रकार किंशुक नाग की किताब-द नमो स्टोरी, अ पॉलिटिकल लाइफ छपकर आई. इस किताब की भी व्यापक चर्चा हुई. इन दोनों किताबों की बिक्री ने प्रकाशन जगत को न स़िर्फ चौंकाया, बल्कि उन्हें मोदी पर किताबें छापने के लिए उकसाया भी. प्रकाशन के कारोबार से जुड़े लोगों को मोदी पर लिखी किताब में मुनाफे का सौदा नज़र आया. नतीजा यह हुआ कि अंग्रेजी में लिखी किताबों के अन्य भाषाओं में अनुवाद छपने लगे. पिछले कुछ दिनों में हिंदी के प्रकाशक प्रभात प्रकाशन ने नरेंद्र मोदी पर तक़रीबन आधा दर्जन से ज़्यादा किताबें छापीं. बाल पाठकों को ध्यान में रखते हुए नरेंद्र मोदी के जीवन पर ग्राफिक

उपन्यास-भविष्य की आशा नरेंद्र मोदी छापा गया. प्रभात प्रकाशन के निदेशक पियूष कुमार का दावा है कि मोदी से जुड़ी किताबों की खासी मांग है, लिहाजा वह इसे छाप रहे हैं. दूसरी वजह है कि लोकसभा चुनाव के पहले देश की जनता में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के बारे में जानने की उत्सुकता भी है.

इस पूरे वातावरण को देखते हुए कुछ लेखकनुमा लोगों को भी संभावना नज़र आई और वे भी इसे भुनाने में जी-जान से जुट गए. यहां पाठकों को याद दिलाते चलें कि जब नब्बे के दशक में बिहार के नेता लालू यादव का डंका बजा करता था, तो उन पर भी काफी किताबें छपी थीं. कई लेखकों ने तो लालू चालीसा तक लिख डाली थी. लालू चालीसा लिखकर अपने नेता का ध्यान खींचने वाले एक शख्स तो चालीसा की महिमा और उसके आशीर्वाद से संसद तक जा पहुंचे थे. इसीलिए लोगों को अब नरेंद्र मोदी में संभावना नज़र आई और वे तरह-तरह से मोदी पर किताबें लिखने लगे. कई लोगों ने विभिन्न समय पर मोदी पर लिखे अलग-अलग लेखों को संपादित करके एक लंबी भूमिका के साथ किताब बना दी और उसे बाज़ार में पेश कर दिया.

मोदी की लोकप्रियता को भुनाने और मोदी तक पहुंचने के लिए लोगों को यह रास्ता आसान लगा और वे इसमें जुट गए. प्रकाशक तो बाज़ार को भुनाने में लगे ही हैं और प्रकाशन जगत के लिए यह शुभ संकेत है कि बाज़ार को ध्यान में रखकर काम हो रहा है. मोदी की दर्जनों जीवनी छापने वाले प्रकाशकों को यह याद दिलाना ज़रूरी है कि भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी की कोई प्रामाणिक जीवनी बाज़ार में नहीं है. मोदी पर जितनी किताबें बाज़ार में हैं या फिर छपकर आने वाली हैं, उससे यह संकेत तो मिलता ही है कि नरेंद्र मोदी मौजूदा वक्त के सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं, जिनके बारे में पाठक सबसे ज़्यादा जानना चाहते हैं और इसी चाहत को भुनाकर बाज़ार मुनाफा भी कमा रहा है. प्रकाशन जगत से जुड़े लोगों का मानना है कि महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी के बाद अगर सबसे ज़्यादा जीवनियां किसी भारतीय राजनेता की बाज़ार में हैं, तो वह हैं नरेंद्र मोदी. 

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