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Monday, 17 June 2013

NIA की जांच का कमाल - मुस्लिम भी दोषमुक्त नहीं, हिन्दुओं का भी हाथ

Monday, 17 June 2013

 राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईएके आरोप पत्र में स्वामी असीमानंद का नाम नहींसाध्वी प्रज्ञा का भीनहीं किसी भी राष्ट्रवादी संगठन की भूमिका नहीं संघ का नाम घसीटकर 'भगवा आतंकवादका शोरमचाने वाले अब कहां हैंसच कौन बोल रहा है सीबीआईएटीएस या फिर एनआईएअगर ये हिन्दूदोषी हैं तो उन 9 आरोपी मुस्लिमों ने जो कबूला थावह क्या lÉÉ? =xÉ मुस्लिमों से सीबीआई ने दबावदेकर सच उगलवाया था या इन हिन्दुओं को प्रताड़ित कर एनआईए ने झूठ पर दस्तखत करवाए?
आखिरकार 22 मई को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मुम्बई के विशेष न्यायालय में वह बहुप्रतीक्षित आरोप पत्र दाखिल कर ही दिया, जिसका शोर मचाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ पदाधिकारियों का नाम बदनाम किया जा रहा था और 'भगवा आतंकवाद' का झूठा शोर मचाया जा रहा था। अपना पूरा जोर लगाकर, कानून की धज्जियां उड़ाकर, कुछ निरपराध-निर्दोष लोगों को यातना देकर, लालच देकर भी, एनआईए के हाथ ऐसा कुछ नहीं लगा है, यह उसके आरोप पत्र से साफ हो गया है। गृह मंत्रालय और उसके तत्कालीन मुखिया पी.चिदम्बरम के इशारे पर एनआईए ने जो झूठी कहानी गढ़ी थी, उसे सिद्ध करने के लिए कुल मिलाकर 3 हजार पन्नों के आरोप पत्र में उसका कहना है कि जम्मू के रघुनाथ मंदिर में बम विस्फोट (2002), श्रमजीवी एक्सप्रेस में विस्फोट(2005) और वाराणसी के संकटमोचन मंदिर में विस्फोट (2006) की घटनाओं की प्रतिक्रिया में मालेगांव में विस्फोट (2006 एवं 2008), मक्का मस्जिद (हैदराबाद), समझौता एक्सप्रेस (2007) एवं अजमेर की दरगाह शरीफ में बम विस्फोट की साजिश रची गई थी। और इसमें सीमापार के मुस्लिम आतंकवादियों  और उनके भारतीय मुस्लिम समर्थकों का नहीं वरन कुछ हिन्दुओं और उनके संगठनों का ही हाथ था। और एनआईए को यह सब तब पता चला जब उसकी पकड़ में स्वामी असीमानंद आए। गुजरात के डांग जिले में ईसाइयों द्वारा मतांतरण के विरुद्ध जनजागरण का प्रतीक बन चुके स्वामी असीमानंद को हैदराबाद की मक्का मस्जिद के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है और फिलहाल वे अम्बाला (हरियाणा) के कारागार में बंदी हैं। 18 सितम्बर, 2011 को उनके एक द्वारा दिए गए एक इकबालिया बयान को जानबूझकर 'लीक' किया गया, अखबारों में प्रचारित कराया गया और फिर उसी आधार पर उक्त मामलों की तेजी से जांच शुरू की गई।
 
(हालांकि स्वामी असीमानंद ने जेल से शपथ पत्र भेजकर अम्बाला के न्यायाधीश को बताया है कि उन्हें बहुत प्रताड़ित कर जबरन यह बयान दिलवाया गया था, उसकी आंतरिक कथा अलग से) और तब कुछ नाम उछाले गए- कर्नल पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा, सुनील जोशी, रामजी कालसांगरा, संदीप डांगे आदि-आदि। गढ़ी गई कहानी के अनुरूप सबूत तलाशने और जुटाने में जुटी एनआईए खाक छानती रही, पर मिला कुछ नहीं। यहां तक कि सुनील जोशी, जिन्हें धमाकों का 'मास्टर माइंड' बताकर प्रचारित किया गया, संघ का पूर्व प्रचारक बताया गया, और जिनकी बाद में हत्या हो गयी, उनकी हत्या के आरोप में गिरफ्तार मुकेश वासानी और हर्षद सोलंकी ने ही जयपुर की अदालत में हलफनामा दिया कि 16 अप्रैल, 2012 से तीन दिन की पूछताछ के दौरान एनआईए के अधिकारियों ने कहा कि संघ और उसके एक वरिष्ठ अधिकारी (इंद्रेश जी) के  षड्यंत्र में शामिल होने का नाम भर ले दो, दोनों को एक-एक करोड़ रुपया मिलेगा।
 
   बहरहाल, थक-हारकर मालेगांव बम धमाके का नया आरोप पत्र दाखिल करते हुए एनआईए ने उसकी गिरफ्त में आए लोकेश शर्मा, धन सिंह, राजेन्द्र चौधरी और मनोहर को आरोपी बनाया है। कथित तौर पर मुख्य आरोपी और योजना के सूत्रधार रामचन्द्र कालसांगरा (रामजी), संदीप डांगे और अमित चौहान को गिरफ्त से बाहर बताया गया है। रामजी और संदीप पर तो 10-10 लाख रू. का इनाम भी घोषित किया गया है। उल्लेखनीय है कि यह सब आरोपी देवास तथा इंदौर(म.प्र.) के रहने वाले हैं। आरोप पत्र में कहा गया है कि 8 सितम्बर, 2006 को नासिक जिले के मुस्लिम बहुल मालेगांव के बड़ा कब्रिस्तान, मुशावरत चौक और हमीदिया मस्जिद के पास जो बम विस्फोट हुए थे, जिसमें 37 लोग मारे गए और 130 घायल हुए, के लिए यही लोग जिम्मेदार हैं। इन्होंने धारा 164 के तहत सक्षम अधिकारी के समक्ष अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। पर एनआईए अपनी ही रची हुई कहानी में उलझकर रह गई है। वह न यह सुबूत जुटा पाई कि इंदौर के लोग मालेगांव ही क्यों गए? क्या उनके आसपास कोई मस्जिद नहीं थी, जहां वे विस्फोट करा पाते? इन लोगों ने अधिक जोखिम क्यों उठाया? मालेगांव कैसे गए, वहां उनका सहयोग किन लोगों ने किया? अगर मालेगांव में उनका कोई सहयोगी नहीं था तो वे मुस्लिमबहुल बस्तियों तक कैसे पहुंचे? और जिन साइकिलों में बम बांधे गए वह साइकिलें किसने और कहां से खरीदीं? और अगर एनआईए द्वारा रची गई यह कहानी सच्ची है तो मालेगांव के ही उन 9 मुस्लिम अभियुक्तों के बारे में वह चुप क्यों हैं जिन्होंने धारा 164 के तहत ही अपराध कबूला था और बम विस्फोट की पूरी कथा और घटनाक्रम बताया था? मालेगांव के विशेष पुलिस दस्ते, फिर महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) के साथ मिलकर केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने जो जांच की थी, उस दौरान कुल 13 मुस्लिम आरोपियों के नाम सामने आए थे, जिनमें से अधिकांश प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) से प्रभावित थे और उसके प्रतिबंधित हो जाने के बाद भूमिगत रहकर सक्रिय थे। कुल पकड़े गए 9 मुस्लिम आरोपियों ने कहा था कि मंदिरों में हमले के बावजूद हिन्दू-मुस्लिम दंगे न भड़कने के कारण अपनी रणनीति में परिवर्तन करते हुए सीमा पार के आकाओ ने मस्जिद में धमाके की साजिश रची थी, ताकि हिन्दुओं की अपेक्षा अधिक उग्र प्रतिक्रिया देने वाला मुस्लिम वर्ग सड़क पर उतर आए और महाराष्ट्र सहित देश भर में दंगे हों। इसीलिए कम शक्ति वाले बम से विस्फोट कराए गए ताकि जन-धन की  हानि कम हो और प्रतिक्रिया ज्यादा भीषण। 21 दिसम्बर, 2006 को विशेष न्यायालय में प्रस्तुत 2800 पृष्ठों के पहले आरोप पत्र में सभी 9 आरोपियों ने अपराध की स्वीकारोक्ति की थी, सारी कड़ियां जुड़ी हुई थीं। 5 फरवरी, 2007 को यही मामला जब सीबीआई को जांच के लिए सौंपा गया तब भी तथ्य और सत्य वही रहे। पकड़े गए 9 आरोपी जेल में थे और न्यायालय में गवाहियों का दौर जारी था। इसी बीच गृह मंत्रालय ने हस्तक्षेप किया और 22 मार्च, 2011 को यह मामला नए सिरे से जांच के लिए एनआईए को सौंप दिया गया। एनआईए ने अपने आकाओं द्वारा दिखाई गई दिशा में नए सिरे से जांच की, कुछ वैसा ही सिद्ध करना चाहा, पर परिणाम वैसा नहीं निकला। इस बीच हुआ यह कि नवम्बर, 2011 में मालेगांव धमाके के मामले में निरुद्ध इन सभी 9 आरोपियों को जमानत मिल गई, क्योंकि एनआईए ने उनकी जमानत याचिकाओं का विरोध ही नहीं किया। मजे की बात यह कि अब नया आरोप पत्र दाखिल कर दिया और उन 9 को दोषमुक्त भी नहीं करार दिया। यानी अब मुम्बई की विशेष अदालत में मालेगांव में 2006 में हुए 3 बम धमाकों के दो मामले चलेंगे। एक में 13 मुस्लिम आरोपी (9 जमानत पर, 4 भगोड़े) और दूसरे में 7 हिन्दू आरोपी (4 गिरफ्त में, 3 भगोड़े)। भारतीय कानून के लिहाज से यह एक अनोखा मुकदमा होगा जिसमें एक ही  वारदात के लिए दो अलग-अलग जांच एजेंसियों के दो अलग-अलग आरोप पत्रों और निष्कर्षों पर बहस होगी। सच तो कानूनी पचडों के चलते देर से ही सामने आएगा, पर एनआईए की करतूत तो सामने आ ही गई है।

एनआईए को मुंह की खानी पड़ेगी

-रंजन त्यागीअधिवक्ता, दिल्ली उच्च न्यायाल्
भारतीय दंड संहिता के अनुसार एक अपराध के लिए सिर्फ एक ही मुकदमा दर्ज हो सकता है, यानी एक ही प्रथम सूचना रपट दर्ज हो सकती है। फिर भले उसकी जांच अलग-अलग एजेंसियों करें, कितने ही पूरक आरोप पत्र दाखिल होते रहें, पर न तो नए सिरे से नया आरोप पत्र दाखिल हो सकता है, न नई मुकदमा संख्या बन सकती। एनआईए ने जो किया है उसे निचली अदालत में ही चुनौती मिलेगी और उसे वहां मुंह की खानी पड़ेगी। भले उसने अपने नए एक्ट का सहारा लिया हो पर भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) केअन्तर्गत ऐसा नहीं हो सकता।ाय

कौन सही कौन गलत?

अगर एनआईए का नया आरोपपत्र सही है तो 2006 और 2007 में नासिक के विशेष जांच दल, महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते और सीबीआई ने जो आरोप पत्र दाखिल किया था, क्या वह झूठा था? 2006 में गिरफ्तार और 2011 में जमानत पर छूटे 9 मुस्लिम युवक क्या बेगुनाह माने जाएंगे? कानूनी स्थिति क्या होगी, दोनों आरोप पत्रों पर एक साथ सुनवाई होगी या अलग-अलग? अगर एनआईए उन आरोपियों को दोषमुक्त नहीं करार दे सकती, क्योंकि यह न्यायालय का काम है, तो फिर न्यायालय में सरकार की ओर से मुस्लिम आरोपियों के खिलाफ कौन पैरवी करेगा और हिन्दुओं के खिलाफ कौन? यदि दोनों के खिलाफ एनआईए के वकील ही खड़े होंगे तो कैसे? किस कहानी को सच और किसे झूठ बताएंगे? अगर सीबीआई के आरोप पत्र को झूठ बताएंगे तो क्या एक जांच एजेंसी दूसरे के खिलाफ खड़ी होगी?

इन आरोपियों ने यह जो कबूलाक्या झूठ था?

अहमद मसीउल्लाह-'मालेगांव में 2002 में हुए दंगे के बाद सिमी से जुड़ा, उसकी सहायता से दुबई होकर कराची गया, वह हथियार चलाने और बम बनाने की ट्रेनिंग ली, फिर दुबई से नेपाल होकर भारत वापस आया, पासपोर्ट फाड़ दिया, बम धमाकों की साजिश रचने में शामिल हुआ और बम बनाए। मस्जिद में और शब-ए-बारात के दिन कब्रिस्तान में इसलिए बम लगवाए ताकि मुस्लिम सड़क पर उतरें, दंगे हो और भारत अस्थिर हो जाए।'
अहमद राजब-'बम बनाने में शब्बीर का साथ दिया। मदरसे के सामने कब्रिस्तान की रेलिंग के पास बम लगाया। तीन धमाकों के बाद भी दंगा नहीं भड़का तो 13 सितम्बर, 2006 को एक दूसरा नकली बम भी मुस्लिमबहुल इलाके में लगाया, जो जिंदा बरामद हुआ।'
शम्सु दोहा-'जिहाद ही हमारी प्रेरणा है। भारत में मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता है। गुजरात का भी बदला लेना था, इसलिए सिमी के सरगनाओं के इशारे पर कम शक्ति वाले बम बनवाकर मस्जिदों में लगवाए ताकि मुस्लिम सड़क पर उतरें और दंगे हो, हम भारत सरकार को बदनाम कर सकें।'
मुहम्मद अली आलम शेख-'सिमी ने ट्रेनिंग दी थी। जिहाद हमारा उद्देश्य है। डा.तनवीर, ऐहतसान, फैजल, मुजम्मिल, आरिफ, जावेद, जमीर, साजिद, सोहेल शेख के साथ टीम बनाकर काम किया। शब्बीर ने सामान दिया तो बम बनाए और उसके ही इशारे पर मस्जिद और कब्रिस्तान में लगाए। प्रस्तुति: जितेन्द्र तिवारी

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