देहरादून/बिशन सिंह बोरा | अंतिम अपडेट 24 जून 2013 10:25 AM IST पर
करोड़ों
श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र बदरीनाथ, केदारनाथ में रोक के बावजूद जिस
तेजी से अनियोजित निर्माण हुआ, पर्यावरणविदों के मुताबिक इससे प्रकृति की
सहनशीलता जवाब दे गई। इसी का नतीजा रहा कि देशभर से यहां पहुंचे हजारों
तीर्थयात्रियों को जान से हाथ धोना पड़ा।
उत्तराखंड आपदा की विशेष कवरेज
हैरानी की बात यह है कि कई बार की चेतावनी के बावजूद सरकारी एजेंसियां आंखें मूंदे रही। यात्रा की आयोजक श्री बदरी-केदार मंदिर समिति तो इससे भी एक कदम आगे रही। जो यात्रियों की सुरक्षा की परवाह किए बगैर केवल तीर्थयात्रियों की बढ़ती संख्या और आय में वृद्धि को उपलब्धि गिनाती रही।
अभी भूला नहीं है तबाही का मंजर
चारों धामों में निर्माण कार्यों पर रोक है, बावजूद बदरीनाथ-केदारनाथ में मंदिर से सटाकर बहुमंजिला इमारतें बनी हैं। पर्यावरणविद एवं उत्तराखंड सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष सुरेश भाई बताते हैं कि पूरा मध्य हिमालयी क्षेत्र आपदा की दृष्टि से अतिसंवेदनशील है, बावजूद प्रकृति से बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ की गई।
निर्माण कार्य होते रहे
चारों धामों में अनियोजित तरीके से निर्माण कार्य होते रहे। वर्ष 1978 के बाद क्षेत्र में हुए निर्माण कार्यों में भारी विस्फोटों का प्रयोग किया गया। पिछले 35 वर्षों में भूकंप से 36 बार धरती डोली। वर्ष 1991, 1999 में आए भूकंप में 850 लोग मारे गए।
भूकंप के झटकों से जगह-जगह दरारें आ गई थी। जिसमें पानी भरने लगा था।
सर्व सेवा संघ की अध्यक्ष राधाबहन भट्ट बताती हैं कि यह आपदा मानव निर्मित है। अनियोजित निर्माण कार्यों ने केदारघाटी में पानी के नुकसान को सौ गुना बढ़ाया है।
आपराधिक लापरवाही
सरकार और सरकारी एजेंसियों की आपराधिक लापरवाही है, कंपन सेशन के लिए मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है। इसके अलावा विभिन्न स्तरों पर हुई लापरवाही के लिए जनहित याचिका दायर की जा सकती है। उच्चन्यायालय इस मामले में किस स्तर पर लापरवाही हुई, कितना मुआवजा दिया जाए, भविष्य में इस तरह से जानमाल का नुकसान न हो, इस सब पर किसी स्वतंत्र एजेंसी को निर्देश जारी कर सकता है।
- एसडी पंत, वरिष्ठ अधिवक्ता
हैरानी की बात यह है कि कई बार की चेतावनी के बावजूद सरकारी एजेंसियां आंखें मूंदे रही। यात्रा की आयोजक श्री बदरी-केदार मंदिर समिति तो इससे भी एक कदम आगे रही। जो यात्रियों की सुरक्षा की परवाह किए बगैर केवल तीर्थयात्रियों की बढ़ती संख्या और आय में वृद्धि को उपलब्धि गिनाती रही।
अभी भूला नहीं है तबाही का मंजर
चारों धामों में निर्माण कार्यों पर रोक है, बावजूद बदरीनाथ-केदारनाथ में मंदिर से सटाकर बहुमंजिला इमारतें बनी हैं। पर्यावरणविद एवं उत्तराखंड सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष सुरेश भाई बताते हैं कि पूरा मध्य हिमालयी क्षेत्र आपदा की दृष्टि से अतिसंवेदनशील है, बावजूद प्रकृति से बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ की गई।
निर्माण कार्य होते रहे
चारों धामों में अनियोजित तरीके से निर्माण कार्य होते रहे। वर्ष 1978 के बाद क्षेत्र में हुए निर्माण कार्यों में भारी विस्फोटों का प्रयोग किया गया। पिछले 35 वर्षों में भूकंप से 36 बार धरती डोली। वर्ष 1991, 1999 में आए भूकंप में 850 लोग मारे गए।
भूकंप के झटकों से जगह-जगह दरारें आ गई थी। जिसमें पानी भरने लगा था।
सर्व सेवा संघ की अध्यक्ष राधाबहन भट्ट बताती हैं कि यह आपदा मानव निर्मित है। अनियोजित निर्माण कार्यों ने केदारघाटी में पानी के नुकसान को सौ गुना बढ़ाया है।
आपराधिक लापरवाही
सरकार और सरकारी एजेंसियों की आपराधिक लापरवाही है, कंपन सेशन के लिए मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है। इसके अलावा विभिन्न स्तरों पर हुई लापरवाही के लिए जनहित याचिका दायर की जा सकती है। उच्चन्यायालय इस मामले में किस स्तर पर लापरवाही हुई, कितना मुआवजा दिया जाए, भविष्य में इस तरह से जानमाल का नुकसान न हो, इस सब पर किसी स्वतंत्र एजेंसी को निर्देश जारी कर सकता है।
- एसडी पंत, वरिष्ठ अधिवक्ता
http://www.amarujala.com/news/states/uttarakhand/despite-prohibitions-manufactur-continued-in-kedarnath-and-badrinath/
This is the nice platform for all of the people those are looking to apply for govt jobs . Keep going thank you...
ReplyDeletenice posts thanku for sharing..
ReplyDeletegovt jobs in maharashtra