भारत की देवभूमि और हिन्दू-आस्था के एक प्रमुख केंद्र पर आई अकल्पनीय आपदा का सच क्या है ? क्या इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी को मात्र एक प्राकृतिक घटना माना जा सकता है ? या इसके पीछे किसी देश अथवा सरकार का षड़यंत्र है ? इस विषय में कुछ चौकाने वाले तत्थ ..
बादलो का फटना और आधुनिक विज्ञान
बादल फटना (क्यूलोनिवस) हमेशा प्राक्रतिक कारणो से नही होता है ! बादलो से बरसात होती है, और बरसात की एक दर होती है, बादलो की दर थोड़ी बहुत बदलती रहती है... लेकिन दस गुने से भी अधिक बदलाव का दूसरा कोई उदाहरण ज्ञात इतिहास में नहीं मिलता है | क्या इतना बड़ा परिवर्तन प्रकृतिक कारणों से संभव है ?
जब बादल भारी मात्रा में आद्रता (यानि पानी ) लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वो अचानक फट पड़ते हैं, यानि संघनन बहुत तेजी से होता है | या जब कोई गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है ! उदाहरण के तौर पर २६ जुलाई २००५ को मुंबई में बादल फटे थे, तब वहां बादल किसी ठोस वस्तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराए थे !
केदारनाथ में पिछले ज्ञात इतिहास (लगभग 5,000 सालो) में कभी भी बादल फटने की इतनी विषम घटना का वर्णन नहीं मिलता है | फिर ये सब अचानक कैसे हुआ ? 20mm (मिलीमीटर) तक बरसने वाली बरसात का स्तर अचानक 300mm से भी ज्यादा कैसे हो गया ?
जब पहाड़ो के बीच में बादल टकराते है उससे बरसात होती है, पर दस गुना पानी के लिये दस गुना ज्यादा बादलो की जरूरत तो होगी ही न | जबकि मौसम विभाग ने ऐसा कुछ भी नहीं बताया था | ये सब प्राक्रतिक कारण से संभव प्रतीक नहीं होता है, किन्तु आज के ''आधुनिक विज्ञान'' से संभव है !!!
बादलो का फटना और बाँध का पानी
अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार बादल फटने के साथ साथ एक और विनाशकारी कार्य हुआ या किया गया था, और वो था बाँध से पानी छोड़ना | क्या कोई बता सकता है की जिस समय बादल फटे, उसी के कुछ ही घंटो के अंतराल में बाँध से पानी क्यों छोड़ा गया था ?
सबसे पहले तो ये कि प्राकृतिक रूप से बादलो का संघनन (क्यूलोनिवस) बहुत छोटे क्षेत्रफल में होता है इतने बड़े क्षेत्रफल में प्राकृतिक रूप से यह संभव नही लगता है ! पहले केदारनाथ में बादल फटते है और फिर मन्दाकिनी और अलकनंदा नदी के बाँधो से पानी छोड़ा जाता है .. प्राप्त जानकारी के अनुसार मन्दाकिनी और अलकनंदा में बादल नही फटा था | तो फिर बाँधो से पानी क्यों छोड़ा गया था ? इसका औचित्य क्या था ? और यदि पानी छोड़ा ही जाना था तो जनता को इसकी पूर्व चेतावनी क्यों नही दी गयी ?
क्या केदारनाथ और उत्तराखंड का ''सरकारी'' तंत्र सो रहा था ? या पहले से ही चंपत हो गया था ? या सरकार को इस प्रकार की घटना की पूर्व जानकारी थी और सब कुछ सुनियोजित था ? यह सब किसी और बड़ी तैयारी का पूर्वाभ्यास तो नहीं था ?
उत्तराखंड की तबाही और चीन का सीमा विवाद
अभी कुछ ही दिन पहले की बात है जब चीन ने हमारी सीमओं का उलंघन किया था | उसके सैनिक कई दिनों तक हमारी सीमओं में 20-25 किलोमीटर अन्दर आकर कैम्प लगते है, वहाँ पर रहते है और फिर एक दिन एक 'गुप्त समझौते' होता है और चीन अपने सैनिको की वापसी कर लेता है | इस बीच हमारी सरकार पूर्णतः शांत रहती है, मीडिया भी इस बात को यथा संभव दबाने का प्रयास करता है | हमारी मंत्री जी भी चीन की यात्रा पर जाते है और चीन की सरकार से विचार-विमर्श करते है |
वर्षो ही नहीं दशको से चीन भारत के हिस्सों पर जबरदस्ती कब्ज़ा जमाने की लगातार कोशिश में लगा हुआ है | अनेक लोगो को जो इस घटना से होने वाली तबाही को समझ सकते थे, पहले दिन से ही शंका थी कि उत्तराखंड में एकाएक जो यह भयंकर जल हादसा हुआ, वह संभवतः प्राकुतिक नहीं है ! ऐसी शंका बहुत लोगो के दिमाग में थी कि कहीं यह पहले से ही बुना गया जाल तो नहीं, किसी बड़े षड़यंत्र का कोई हिस्सा तो नहीं है ? एकाएक इतना जल प्रवाह और वह भी बिना किसी पूर्व सूचना के, और साथ में बाँध का अथाह जल प्रवाह छोड़ देना |
हम अक्सर सुनते है कि अमुक समुंदरी तट पर मछुआरो को आंधी, तेज़ हवाओ और बारिश की पूर्व चेतानी दी जा रही है | आमतौर पर लोगो को खराब मौसम की जानकारी कम से कम 24 घंटो से एक हफ्ता पहले दे दी जाती है | फिर क्यों एक ऐसे तीर्थ स्थल पर जहाँ हजारो-लाखो की संख्या में तीर्थ यात्री होते हैं, लोगो लोगो को मौसम की ऐसी कोई पूर्व सुचना नहीं दी गयी ? यदि ऐसा हुआ होता तो हज़ारो लोगो की जान बचायी जा सकती थी और निश्चित ही विनाश लीला इतनी भयावह नहीं होती |
लेकिन इधर सब कुछ "एकाएक" हो गया | न किसी को ऐसी उम्मीद थी, न ही कोई जानकारी और न ही उनके बाद संभलने का कोई समय था | यदि वहां की सरकार को खराब मौसम की जानकारी थी तो लोगो को सही समय पर इसके बारे में सूचित क्यों नहीं किया गया ? और यदि सरकार को भी खराब मौसम की जानकारी नहीं थी तो फिर वहां एकाएक मौसम खराब होना, बादल फटना, पानी के बाँध खोल कर पानी उधर बहा देना, यह सब किस साजिश के तहत था ? कौन है इसके पीछे ?
आपको ज्ञात होगा कि चीन अपने देश में आधुनिक विज्ञान द्वारा अप्राकृतिक बारिश करने में सक्षम है|
महाविनाश और जीवन/लाशो का घिनौना व्यापार
कांग्रेस के नेता प्रेस में बड़ी शान से यह बताते हैं कि उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन मैडम सोनिया गांधी की देखरेख में चल रहा है | लेकिन एक शर्मनाक खुलासा है कि सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाडरा की कंपनी जिंदा लोगों को बचाने के लिए दो लाख और लाशों को ले जाने के लिए एक एक लाख रुपये वसूल कर रही है | दरअसल, राबर्ड वाडरा की एक कंपनी है. इसका नाम है ब्लू ब्रीज ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड | यह कंपनी बद्रीनाथ-केदारनाथ में हवाई सेवाएं देता है, इस कंपनी का रजिस्ट्रेशन नंबर U52100DL2007PTC170055 है | इस कंपनी के दो डायरेक्टर्स हैं, एक तो राबर्ड वाडरा है और दूसरी इनकी मां मौरीन वाडरा है |
कई बेवसाइट पर ये खबर आ चुकी है लेकिन इस खबरों का कांग्रेस पार्टी ने न तो कोई खंडन किया है और न ही अब तक कोई प्रतिक्रिया आई है | क्या राबर्ट वाड्रा आपदा प्रबंधन के नाम पर व्यवसाय कर रहा है ? क्या यह कंपनी उसकी नहीं है ? क्या इस तरह के अमानवीय कंपनियों को भारत में आपरेट करने की अनुमति दी जा सकती है ? देश के बड़े बड़े चैनलों के बड़े बड़े रिपोर्टर हवाई सफर कर इस आपदा को कवर कर रहे हैं, क्या उनकी आंखों पर पट्टी बंधी है या फिर गांधी या वाड्रा नाम सुनकर ही इनके हाथ पांव ठंडे पड़ जाते हैं ? http://oyepages.com/blog/view/id/51c8c7d1bc54b26f5e000000
क्या सरकार और मीडिया कुछ छिपा रही है ?
आरएसएस के स्वंसेवक जो काफी दिनों से उस जगह पर लोगो की सेवा कर रहे थे, उन्होंने भी बताया कि मीडिया बहुत कुछ छिपा रही है | उधर के असली हालत देश के सामने नहीं रखे जा रहे | कम से कम चालीस हजार लोग मारे जा चुके हैं | उन्होंने भी यही बोला कि सब कुछ बिलकुल अचानक हुआ, किसी के पास सँभालने का कोई मौका नहीं था | चीन के पास कुत्रिम बादल बनाने और बादल फाड़ने की तकनीक है | सब को शक ही नहीं यकीन है कि उधर बादलों पर सिल्वर आयोडाइड का छिडकाव करके यह हादसा करवाया गया है | और कुछ बांधो का पानी भी उधर छोड़ा गया, फिर चाहे यह बात सरकार और मीडिया खोले या न खोले |
आज नहीं तो कल, जो भी सच होगा वो सब सामने आना ही चाहिए और अवश्य ही आयेगा | लेकिन हमारी सरकार और मीडिया इस विषय में कुछ भी कहने से कतरा रही है |
जय माँ भारती ..
- सिन्धु गुप्ता
- See more at: http://oyepages.com/blog/view/id/51ca2614bc54b25746000000#sthash.vNJpzDJg.hJ9lm1f5.dpuf
बादलो का फटना और आधुनिक विज्ञान
बादल फटना (क्यूलोनिवस) हमेशा प्राक्रतिक कारणो से नही होता है ! बादलो से बरसात होती है, और बरसात की एक दर होती है, बादलो की दर थोड़ी बहुत बदलती रहती है... लेकिन दस गुने से भी अधिक बदलाव का दूसरा कोई उदाहरण ज्ञात इतिहास में नहीं मिलता है | क्या इतना बड़ा परिवर्तन प्रकृतिक कारणों से संभव है ?
जब बादल भारी मात्रा में आद्रता (यानि पानी ) लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वो अचानक फट पड़ते हैं, यानि संघनन बहुत तेजी से होता है | या जब कोई गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है ! उदाहरण के तौर पर २६ जुलाई २००५ को मुंबई में बादल फटे थे, तब वहां बादल किसी ठोस वस्तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराए थे !
केदारनाथ में पिछले ज्ञात इतिहास (लगभग 5,000 सालो) में कभी भी बादल फटने की इतनी विषम घटना का वर्णन नहीं मिलता है | फिर ये सब अचानक कैसे हुआ ? 20mm (मिलीमीटर) तक बरसने वाली बरसात का स्तर अचानक 300mm से भी ज्यादा कैसे हो गया ?
जब पहाड़ो के बीच में बादल टकराते है उससे बरसात होती है, पर दस गुना पानी के लिये दस गुना ज्यादा बादलो की जरूरत तो होगी ही न | जबकि मौसम विभाग ने ऐसा कुछ भी नहीं बताया था | ये सब प्राक्रतिक कारण से संभव प्रतीक नहीं होता है, किन्तु आज के ''आधुनिक विज्ञान'' से संभव है !!!
बादलो का फटना और बाँध का पानी
अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार बादल फटने के साथ साथ एक और विनाशकारी कार्य हुआ या किया गया था, और वो था बाँध से पानी छोड़ना | क्या कोई बता सकता है की जिस समय बादल फटे, उसी के कुछ ही घंटो के अंतराल में बाँध से पानी क्यों छोड़ा गया था ?
सबसे पहले तो ये कि प्राकृतिक रूप से बादलो का संघनन (क्यूलोनिवस) बहुत छोटे क्षेत्रफल में होता है इतने बड़े क्षेत्रफल में प्राकृतिक रूप से यह संभव नही लगता है ! पहले केदारनाथ में बादल फटते है और फिर मन्दाकिनी और अलकनंदा नदी के बाँधो से पानी छोड़ा जाता है .. प्राप्त जानकारी के अनुसार मन्दाकिनी और अलकनंदा में बादल नही फटा था | तो फिर बाँधो से पानी क्यों छोड़ा गया था ? इसका औचित्य क्या था ? और यदि पानी छोड़ा ही जाना था तो जनता को इसकी पूर्व चेतावनी क्यों नही दी गयी ?
क्या केदारनाथ और उत्तराखंड का ''सरकारी'' तंत्र सो रहा था ? या पहले से ही चंपत हो गया था ? या सरकार को इस प्रकार की घटना की पूर्व जानकारी थी और सब कुछ सुनियोजित था ? यह सब किसी और बड़ी तैयारी का पूर्वाभ्यास तो नहीं था ?
उत्तराखंड की तबाही और चीन का सीमा विवाद
अभी कुछ ही दिन पहले की बात है जब चीन ने हमारी सीमओं का उलंघन किया था | उसके सैनिक कई दिनों तक हमारी सीमओं में 20-25 किलोमीटर अन्दर आकर कैम्प लगते है, वहाँ पर रहते है और फिर एक दिन एक 'गुप्त समझौते' होता है और चीन अपने सैनिको की वापसी कर लेता है | इस बीच हमारी सरकार पूर्णतः शांत रहती है, मीडिया भी इस बात को यथा संभव दबाने का प्रयास करता है | हमारी मंत्री जी भी चीन की यात्रा पर जाते है और चीन की सरकार से विचार-विमर्श करते है |
वर्षो ही नहीं दशको से चीन भारत के हिस्सों पर जबरदस्ती कब्ज़ा जमाने की लगातार कोशिश में लगा हुआ है | अनेक लोगो को जो इस घटना से होने वाली तबाही को समझ सकते थे, पहले दिन से ही शंका थी कि उत्तराखंड में एकाएक जो यह भयंकर जल हादसा हुआ, वह संभवतः प्राकुतिक नहीं है ! ऐसी शंका बहुत लोगो के दिमाग में थी कि कहीं यह पहले से ही बुना गया जाल तो नहीं, किसी बड़े षड़यंत्र का कोई हिस्सा तो नहीं है ? एकाएक इतना जल प्रवाह और वह भी बिना किसी पूर्व सूचना के, और साथ में बाँध का अथाह जल प्रवाह छोड़ देना |
हम अक्सर सुनते है कि अमुक समुंदरी तट पर मछुआरो को आंधी, तेज़ हवाओ और बारिश की पूर्व चेतानी दी जा रही है | आमतौर पर लोगो को खराब मौसम की जानकारी कम से कम 24 घंटो से एक हफ्ता पहले दे दी जाती है | फिर क्यों एक ऐसे तीर्थ स्थल पर जहाँ हजारो-लाखो की संख्या में तीर्थ यात्री होते हैं, लोगो लोगो को मौसम की ऐसी कोई पूर्व सुचना नहीं दी गयी ? यदि ऐसा हुआ होता तो हज़ारो लोगो की जान बचायी जा सकती थी और निश्चित ही विनाश लीला इतनी भयावह नहीं होती |
लेकिन इधर सब कुछ "एकाएक" हो गया | न किसी को ऐसी उम्मीद थी, न ही कोई जानकारी और न ही उनके बाद संभलने का कोई समय था | यदि वहां की सरकार को खराब मौसम की जानकारी थी तो लोगो को सही समय पर इसके बारे में सूचित क्यों नहीं किया गया ? और यदि सरकार को भी खराब मौसम की जानकारी नहीं थी तो फिर वहां एकाएक मौसम खराब होना, बादल फटना, पानी के बाँध खोल कर पानी उधर बहा देना, यह सब किस साजिश के तहत था ? कौन है इसके पीछे ?
आपको ज्ञात होगा कि चीन अपने देश में आधुनिक विज्ञान द्वारा अप्राकृतिक बारिश करने में सक्षम है|
महाविनाश और जीवन/लाशो का घिनौना व्यापार
कांग्रेस के नेता प्रेस में बड़ी शान से यह बताते हैं कि उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन मैडम सोनिया गांधी की देखरेख में चल रहा है | लेकिन एक शर्मनाक खुलासा है कि सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाडरा की कंपनी जिंदा लोगों को बचाने के लिए दो लाख और लाशों को ले जाने के लिए एक एक लाख रुपये वसूल कर रही है | दरअसल, राबर्ड वाडरा की एक कंपनी है. इसका नाम है ब्लू ब्रीज ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड | यह कंपनी बद्रीनाथ-केदारनाथ में हवाई सेवाएं देता है, इस कंपनी का रजिस्ट्रेशन नंबर U52100DL2007PTC170055 है | इस कंपनी के दो डायरेक्टर्स हैं, एक तो राबर्ड वाडरा है और दूसरी इनकी मां मौरीन वाडरा है |
कई बेवसाइट पर ये खबर आ चुकी है लेकिन इस खबरों का कांग्रेस पार्टी ने न तो कोई खंडन किया है और न ही अब तक कोई प्रतिक्रिया आई है | क्या राबर्ट वाड्रा आपदा प्रबंधन के नाम पर व्यवसाय कर रहा है ? क्या यह कंपनी उसकी नहीं है ? क्या इस तरह के अमानवीय कंपनियों को भारत में आपरेट करने की अनुमति दी जा सकती है ? देश के बड़े बड़े चैनलों के बड़े बड़े रिपोर्टर हवाई सफर कर इस आपदा को कवर कर रहे हैं, क्या उनकी आंखों पर पट्टी बंधी है या फिर गांधी या वाड्रा नाम सुनकर ही इनके हाथ पांव ठंडे पड़ जाते हैं ? http://oyepages.com/blog/view/id/51c8c7d1bc54b26f5e000000
क्या सरकार और मीडिया कुछ छिपा रही है ?
आरएसएस के स्वंसेवक जो काफी दिनों से उस जगह पर लोगो की सेवा कर रहे थे, उन्होंने भी बताया कि मीडिया बहुत कुछ छिपा रही है | उधर के असली हालत देश के सामने नहीं रखे जा रहे | कम से कम चालीस हजार लोग मारे जा चुके हैं | उन्होंने भी यही बोला कि सब कुछ बिलकुल अचानक हुआ, किसी के पास सँभालने का कोई मौका नहीं था | चीन के पास कुत्रिम बादल बनाने और बादल फाड़ने की तकनीक है | सब को शक ही नहीं यकीन है कि उधर बादलों पर सिल्वर आयोडाइड का छिडकाव करके यह हादसा करवाया गया है | और कुछ बांधो का पानी भी उधर छोड़ा गया, फिर चाहे यह बात सरकार और मीडिया खोले या न खोले |
आज नहीं तो कल, जो भी सच होगा वो सब सामने आना ही चाहिए और अवश्य ही आयेगा | लेकिन हमारी सरकार और मीडिया इस विषय में कुछ भी कहने से कतरा रही है |
जय माँ भारती ..
- सिन्धु गुप्ता
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भारत
की देवभूमि और हिन्दू-आस्था के एक प्रमुख केंद्र पर आई अकल्पनीय आपदा का
सच क्या है ? क्या इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी को मात्र एक प्राकृतिक घटना
माना जा सकता है ? या इसके पीछे किसी देश अथवा सरकार का षड़यंत्र है ? इस
विषय में कुछ चौकाने वाले तत्थ ..
बादलो का फटना और आधुनिक विज्ञान
बादल फटना (क्यूलोनिवस) हमेशा प्राक्रतिक कारणो से नही होता है ! बादलो से बरसात होती है, और बरसात की एक दर होती है, बादलो की दर थोड़ी बहुत बदलती रहती है... लेकिन दस गुने से भी अधिक बदलाव का दूसरा कोई उदाहरण ज्ञात इतिहास में नहीं मिलता है | क्या इतना बड़ा परिवर्तन प्रकृतिक कारणों से संभव है ?
जब बादल भारी मात्रा में आद्रता (यानि पानी ) लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वो अचानक फट पड़ते हैं, यानि संघनन बहुत तेजी से होता है | या जब कोई गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है ! उदाहरण के तौर पर २६ जुलाई २००५ को मुंबई में बादल फटे थे, तब वहां बादल किसी ठोस वस्तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराए थे !
केदारनाथ में पिछले ज्ञात इतिहास (लगभग 5,000 सालो) में कभी भी बादल फटने की इतनी विषम घटना का वर्णन नहीं मिलता है | फिर ये सब अचानक कैसे हुआ ? 20mm (मिलीमीटर) तक बरसने वाली बरसात का स्तर अचानक 300mm से भी ज्यादा कैसे हो गया ?
जब पहाड़ो के बीच में बादल टकराते है उससे बरसात होती है, पर दस गुना पानी के लिये दस गुना ज्यादा बादलो की जरूरत तो होगी ही न | जबकि मौसम विभाग ने ऐसा कुछ भी नहीं बताया था | ये सब प्राक्रतिक कारण से संभव प्रतीक नहीं होता है, किन्तु आज के ''आधुनिक विज्ञान'' से संभव है !!!
बादलो का फटना और बाँध का पानी
अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार बादल फटने के साथ साथ एक और विनाशकारी कार्य हुआ या किया गया था, और वो था बाँध से पानी छोड़ना | क्या कोई बता सकता है की जिस समय बादल फटे, उसी के कुछ ही घंटो के अंतराल में बाँध से पानी क्यों छोड़ा गया था ?
सबसे पहले तो ये कि प्राकृतिक रूप से बादलो का संघनन (क्यूलोनिवस) बहुत छोटे क्षेत्रफल में होता है इतने बड़े क्षेत्रफल में प्राकृतिक रूप से यह संभव नही लगता है ! पहले केदारनाथ में बादल फटते है और फिर मन्दाकिनी और अलकनंदा नदी के बाँधो से पानी छोड़ा जाता है .. प्राप्त जानकारी के अनुसार मन्दाकिनी और अलकनंदा में बादल नही फटा था | तो फिर बाँधो से पानी क्यों छोड़ा गया था ? इसका औचित्य क्या था ? और यदि पानी छोड़ा ही जाना था तो जनता को इसकी पूर्व चेतावनी क्यों नही दी गयी ?
क्या केदारनाथ और उत्तराखंड का ''सरकारी'' तंत्र सो रहा था ? या पहले से ही चंपत हो गया था ? या सरकार को इस प्रकार की घटना की पूर्व जानकारी थी और सब कुछ सुनियोजित था ? यह सब किसी और बड़ी तैयारी का पूर्वाभ्यास तो नहीं था ?
उत्तराखंड की तबाही और चीन का सीमा विवाद
हम अक्सर सुनते है कि अमुक समुंदरी तट पर मछुआरो को आंधी, तेज़ हवाओ और बारिश की पूर्व चेतानी दी जा रही है | आमतौर पर लोगो को खराब मौसम की जानकारी कम से कम 24 घंटो से एक हफ्ता पहले दे दी जाती है | फिर क्यों एक ऐसे तीर्थ स्थल पर जहाँ हजारो-लाखो की संख्या में तीर्थ यात्री होते हैं, लोगो लोगो को मौसम की ऐसी कोई पूर्व सुचना नहीं दी गयी ? यदि ऐसा हुआ होता तो हज़ारो लोगो की जान बचायी जा सकती थी और निश्चित ही विनाश लीला इतनी भयावह नहीं होती |
लेकिन इधर सब कुछ "एकाएक" हो गया | न किसी को ऐसी उम्मीद थी, न ही कोई जानकारी और न ही उनके बाद संभलने का कोई समय था | यदि वहां की सरकार को खराब मौसम की जानकारी थी तो लोगो को सही समय पर इसके बारे में सूचित क्यों नहीं किया गया ? और यदि सरकार को भी खराब मौसम की जानकारी नहीं थी तो फिर वहां एकाएक मौसम खराब होना, बादल फटना, पानी के बाँध खोल कर पानी उधर बहा देना, यह सब किस साजिश के तहत था ? कौन है इसके पीछे ?
आपको ज्ञात होगा कि चीन अपने देश में आधुनिक विज्ञान द्वारा अप्राकृतिक बारिश करने में सक्षम है|
महाविनाश और जीवन/लाशो का घिनौना व्यापार
कांग्रेस के नेता प्रेस में बड़ी शान से यह बताते हैं कि उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन मैडम सोनिया गांधी की देखरेख में चल रहा है | लेकिन एक शर्मनाक खुलासा है कि सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाडरा की कंपनी जिंदा लोगों को बचाने के लिए दो लाख और लाशों को ले जाने के लिए एक एक लाख रुपये वसूल कर रही है | दरअसल, राबर्ड वाडरा की एक कंपनी है. इसका नाम है ब्लू ब्रीज ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड | यह कंपनी बद्रीनाथ-केदारनाथ में हवाई सेवाएं देता है, इस कंपनी का रजिस्ट्रेशन नंबर U52100DL2007PTC170055 है | इस कंपनी के दो डायरेक्टर्स हैं, एक तो राबर्ड वाडरा है और दूसरी इनकी मां मौरीन वाडरा है |
कई बेवसाइट पर ये खबर आ चुकी है लेकिन इस खबरों का कांग्रेस पार्टी ने न तो कोई खंडन किया है और न ही अब तक कोई प्रतिक्रिया आई है | क्या राबर्ट वाड्रा आपदा प्रबंधन के नाम पर व्यवसाय कर रहा है ? क्या यह कंपनी उसकी नहीं है ? क्या इस तरह के अमानवीय कंपनियों को भारत में आपरेट करने की अनुमति दी जा सकती है ? देश के बड़े बड़े चैनलों के बड़े बड़े रिपोर्टर हवाई सफर कर इस आपदा को कवर कर रहे हैं, क्या उनकी आंखों पर पट्टी बंधी है या फिर गांधी या वाड्रा नाम सुनकर ही इनके हाथ पांव ठंडे पड़ जाते हैं ? http://oyepages.com/blog/view/id/51c8c7d1bc54b26f5e000000
क्या सरकार और मीडिया कुछ छिपा रही है ?
आरएसएस के स्वंसेवक जो काफी दिनों से उस जगह पर लोगो की सेवा कर रहे थे, उन्होंने भी बताया कि मीडिया बहुत कुछ छिपा रही है | उधर के असली हालत देश के सामने नहीं रखे जा रहे | कम से कम चालीस हजार लोग मारे जा चुके हैं | उन्होंने भी यही बोला कि सब कुछ बिलकुल अचानक हुआ, किसी के पास सँभालने का कोई मौका नहीं था | चीन के पास कुत्रिम बादल बनाने और बादल फाड़ने की तकनीक है | सब को शक ही नहीं यकीन है कि उधर बादलों पर सिल्वर आयोडाइड का छिडकाव करके यह हादसा करवाया गया है | और कुछ बांधो का पानी भी उधर छोड़ा गया, फिर चाहे यह बात सरकार और मीडिया खोले या न खोले |
आज नहीं तो कल, जो भी सच होगा वो सब सामने आना ही चाहिए और अवश्य ही आयेगा | लेकिन हमारी सरकार और मीडिया इस विषय में कुछ भी कहने से कतरा रही है |
जय माँ भारती ..
- सिन्धु गुप्ता
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बादलो का फटना और आधुनिक विज्ञान
बादल फटना (क्यूलोनिवस) हमेशा प्राक्रतिक कारणो से नही होता है ! बादलो से बरसात होती है, और बरसात की एक दर होती है, बादलो की दर थोड़ी बहुत बदलती रहती है... लेकिन दस गुने से भी अधिक बदलाव का दूसरा कोई उदाहरण ज्ञात इतिहास में नहीं मिलता है | क्या इतना बड़ा परिवर्तन प्रकृतिक कारणों से संभव है ?
जब बादल भारी मात्रा में आद्रता (यानि पानी ) लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वो अचानक फट पड़ते हैं, यानि संघनन बहुत तेजी से होता है | या जब कोई गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है ! उदाहरण के तौर पर २६ जुलाई २००५ को मुंबई में बादल फटे थे, तब वहां बादल किसी ठोस वस्तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराए थे !
केदारनाथ में पिछले ज्ञात इतिहास (लगभग 5,000 सालो) में कभी भी बादल फटने की इतनी विषम घटना का वर्णन नहीं मिलता है | फिर ये सब अचानक कैसे हुआ ? 20mm (मिलीमीटर) तक बरसने वाली बरसात का स्तर अचानक 300mm से भी ज्यादा कैसे हो गया ?
जब पहाड़ो के बीच में बादल टकराते है उससे बरसात होती है, पर दस गुना पानी के लिये दस गुना ज्यादा बादलो की जरूरत तो होगी ही न | जबकि मौसम विभाग ने ऐसा कुछ भी नहीं बताया था | ये सब प्राक्रतिक कारण से संभव प्रतीक नहीं होता है, किन्तु आज के ''आधुनिक विज्ञान'' से संभव है !!!
बादलो का फटना और बाँध का पानी
अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार बादल फटने के साथ साथ एक और विनाशकारी कार्य हुआ या किया गया था, और वो था बाँध से पानी छोड़ना | क्या कोई बता सकता है की जिस समय बादल फटे, उसी के कुछ ही घंटो के अंतराल में बाँध से पानी क्यों छोड़ा गया था ?
सबसे पहले तो ये कि प्राकृतिक रूप से बादलो का संघनन (क्यूलोनिवस) बहुत छोटे क्षेत्रफल में होता है इतने बड़े क्षेत्रफल में प्राकृतिक रूप से यह संभव नही लगता है ! पहले केदारनाथ में बादल फटते है और फिर मन्दाकिनी और अलकनंदा नदी के बाँधो से पानी छोड़ा जाता है .. प्राप्त जानकारी के अनुसार मन्दाकिनी और अलकनंदा में बादल नही फटा था | तो फिर बाँधो से पानी क्यों छोड़ा गया था ? इसका औचित्य क्या था ? और यदि पानी छोड़ा ही जाना था तो जनता को इसकी पूर्व चेतावनी क्यों नही दी गयी ?
क्या केदारनाथ और उत्तराखंड का ''सरकारी'' तंत्र सो रहा था ? या पहले से ही चंपत हो गया था ? या सरकार को इस प्रकार की घटना की पूर्व जानकारी थी और सब कुछ सुनियोजित था ? यह सब किसी और बड़ी तैयारी का पूर्वाभ्यास तो नहीं था ?
उत्तराखंड की तबाही और चीन का सीमा विवाद
अभी कुछ ही दिन पहले की बात है जब चीन ने हमारी सीमओं का उलंघन किया था |
उसके सैनिक कई दिनों तक हमारी सीमओं में 20-25 किलोमीटर अन्दर आकर कैम्प
लगते है, वहाँ पर रहते है और फिर एक दिन एक 'गुप्त समझौते' होता है और चीन
अपने सैनिको की वापसी कर लेता है | इस बीच हमारी सरकार पूर्णतः शांत रहती
है, मीडिया भी इस बात को यथा संभव दबाने का प्रयास करता है | हमारी मंत्री
जी भी चीन की यात्रा पर जाते है और चीन की सरकार से विचार-विमर्श करते है |
वर्षो ही नहीं दशको से चीन भारत के हिस्सों पर जबरदस्ती कब्ज़ा जमाने की
लगातार कोशिश में लगा हुआ है | अनेक लोगो को जो इस घटना से होने वाली तबाही
को समझ सकते थे, पहले दिन से ही शंका थी कि उत्तराखंड में एकाएक जो यह
भयंकर जल हादसा हुआ, वह संभवतः प्राकुतिक नहीं है ! ऐसी शंका बहुत लोगो के
दिमाग में थी कि कहीं यह पहले से ही बुना गया जाल तो नहीं, किसी बड़े
षड़यंत्र का कोई हिस्सा तो नहीं है ? एकाएक इतना जल प्रवाह और वह भी बिना
किसी पूर्व सूचना के, और साथ में बाँध का अथाह जल प्रवाह छोड़ देना |हम अक्सर सुनते है कि अमुक समुंदरी तट पर मछुआरो को आंधी, तेज़ हवाओ और बारिश की पूर्व चेतानी दी जा रही है | आमतौर पर लोगो को खराब मौसम की जानकारी कम से कम 24 घंटो से एक हफ्ता पहले दे दी जाती है | फिर क्यों एक ऐसे तीर्थ स्थल पर जहाँ हजारो-लाखो की संख्या में तीर्थ यात्री होते हैं, लोगो लोगो को मौसम की ऐसी कोई पूर्व सुचना नहीं दी गयी ? यदि ऐसा हुआ होता तो हज़ारो लोगो की जान बचायी जा सकती थी और निश्चित ही विनाश लीला इतनी भयावह नहीं होती |
लेकिन इधर सब कुछ "एकाएक" हो गया | न किसी को ऐसी उम्मीद थी, न ही कोई जानकारी और न ही उनके बाद संभलने का कोई समय था | यदि वहां की सरकार को खराब मौसम की जानकारी थी तो लोगो को सही समय पर इसके बारे में सूचित क्यों नहीं किया गया ? और यदि सरकार को भी खराब मौसम की जानकारी नहीं थी तो फिर वहां एकाएक मौसम खराब होना, बादल फटना, पानी के बाँध खोल कर पानी उधर बहा देना, यह सब किस साजिश के तहत था ? कौन है इसके पीछे ?
आपको ज्ञात होगा कि चीन अपने देश में आधुनिक विज्ञान द्वारा अप्राकृतिक बारिश करने में सक्षम है|
महाविनाश और जीवन/लाशो का घिनौना व्यापार
कांग्रेस के नेता प्रेस में बड़ी शान से यह बताते हैं कि उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन मैडम सोनिया गांधी की देखरेख में चल रहा है | लेकिन एक शर्मनाक खुलासा है कि सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाडरा की कंपनी जिंदा लोगों को बचाने के लिए दो लाख और लाशों को ले जाने के लिए एक एक लाख रुपये वसूल कर रही है | दरअसल, राबर्ड वाडरा की एक कंपनी है. इसका नाम है ब्लू ब्रीज ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड | यह कंपनी बद्रीनाथ-केदारनाथ में हवाई सेवाएं देता है, इस कंपनी का रजिस्ट्रेशन नंबर U52100DL2007PTC170055 है | इस कंपनी के दो डायरेक्टर्स हैं, एक तो राबर्ड वाडरा है और दूसरी इनकी मां मौरीन वाडरा है |
कई बेवसाइट पर ये खबर आ चुकी है लेकिन इस खबरों का कांग्रेस पार्टी ने न तो कोई खंडन किया है और न ही अब तक कोई प्रतिक्रिया आई है | क्या राबर्ट वाड्रा आपदा प्रबंधन के नाम पर व्यवसाय कर रहा है ? क्या यह कंपनी उसकी नहीं है ? क्या इस तरह के अमानवीय कंपनियों को भारत में आपरेट करने की अनुमति दी जा सकती है ? देश के बड़े बड़े चैनलों के बड़े बड़े रिपोर्टर हवाई सफर कर इस आपदा को कवर कर रहे हैं, क्या उनकी आंखों पर पट्टी बंधी है या फिर गांधी या वाड्रा नाम सुनकर ही इनके हाथ पांव ठंडे पड़ जाते हैं ? http://oyepages.com/blog/view/id/51c8c7d1bc54b26f5e000000
क्या सरकार और मीडिया कुछ छिपा रही है ?
आरएसएस के स्वंसेवक जो काफी दिनों से उस जगह पर लोगो की सेवा कर रहे थे, उन्होंने भी बताया कि मीडिया बहुत कुछ छिपा रही है | उधर के असली हालत देश के सामने नहीं रखे जा रहे | कम से कम चालीस हजार लोग मारे जा चुके हैं | उन्होंने भी यही बोला कि सब कुछ बिलकुल अचानक हुआ, किसी के पास सँभालने का कोई मौका नहीं था | चीन के पास कुत्रिम बादल बनाने और बादल फाड़ने की तकनीक है | सब को शक ही नहीं यकीन है कि उधर बादलों पर सिल्वर आयोडाइड का छिडकाव करके यह हादसा करवाया गया है | और कुछ बांधो का पानी भी उधर छोड़ा गया, फिर चाहे यह बात सरकार और मीडिया खोले या न खोले |
आज नहीं तो कल, जो भी सच होगा वो सब सामने आना ही चाहिए और अवश्य ही आयेगा | लेकिन हमारी सरकार और मीडिया इस विषय में कुछ भी कहने से कतरा रही है |
जय माँ भारती ..
- सिन्धु गुप्ता
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