रायपुर। छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले (देखें एक्स्क्लूसिव तस्वीरें) की
जिम्मेदारी तो भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने ले ली है, लेकिन
इस हमले के पीछे राजनीतिक साजिश की भी बू आने लगी है। हमले में मारे गए नेता महेंद्र कर्मा के बेटे ने तो साफ तौर पर इस नरसंहार को राजनीतिक
साजिश का नतीजा बताया है। कर्मा के बेटे दीपक कर्मा ने साफ कहा है कि
शनिवार को नक्सली घटना नहीं हुई है। यह राजनीतिक साजिश है। अगर केवल
महेंद्र कर्मा की मौत होती तो कहा जा सकता था कि यह नक्सली वारदात है।
नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल की मौत से संदेह गहरा जाता है। इसलिए पूरी
घटना की सीबीआई जांच होनी चाहिए। दीपक ने यह मांग केंद्रीय गृह राज्य
मंत्री आरपीएन सिंह से भी की है।
यही नहीं, घटना के पीछे राजनीतिक साजिश की बू उठने की और वजह भी है।
साजिश का शक और गहराया
परिवर्तन यात्रा के तयशुदा कार्यक्रम में किया गया बदलाव कई संदेहों
को जन्म दे रहा है। निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक परिवर्तन यात्रा के तहत
कांग्रेस विधायक कवासी लखमा के विधानसभा क्षेत्र (कोंटा) के सुकमा में 22
मई को सभा रखी गई थी। इस दिन सिर्फ यही एक कार्यक्रम तय था, लेकिन बाद में
इस मूल कार्यक्रम में दो बड़े बदलाव किए गए। पहला- सुकमा की 22 मई को होने
वाली सभा 25 मई को कर दी गई और दूसरा- सुकमा के साथ ही एक और सभा दरभा में
भी रख दी गई। और उसी दिन कांग्रेस नेताओं के सुकमा से दरभा जाने के दौरान
ही नक्सलियों ने इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दिया। यह किसी का आरोप नहीं,
बल्कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्रेस विज्ञप्ति से ही साफ हो रहा है।
2 अप्रैल को प्रदेश कांग्रेस की आधिकारिक विज्ञप्ति में बताया गया था
कि परिवर्तन यात्रा के तहत 22 मई को सुकमा में और 25 मई को अंतागढ़ और
दल्लीराजहरा में सभा होनी है। बाद में इस कार्यक्रम में बदलाव किया गया। इस
बदलाव की जानकारी बाकायदा 1 मई को जारी हुई प्रेस विज्ञप्ति में दी गई।
सामान्य परिस्थितियों में इस बदलाव का कोई महत्व नहीं रहता लेकिन इस
गंभीर हादसे के बाद यह सबसे महत्वपूर्ण और चौंकाने वाला बिंदु हो गया है।
कार्यक्रम को अंतिम रुप देने वाले पटेल अब नहीं रहे। इसलिए इस बारे में
शायद अब कोई यह नहीं बता सकेगा कि किसके कहने पर परिवर्तन यात्रा का
कार्यक्रम बदला गया।
हत्याकांड की जांच एनआईए ने शुरू कर दी है, पर अभी यह तय नहीं है कि राजनीतिक साजिश के एंगल से जांच हो रही है या नहीं?
लखमा बोले- मुझे क्यों छोड़ दिया, मैं क्या जानूं
दरभा इलाके में हुए नक्सली हमले में घायल कोंटा के कांग्रेस विधायक
कवासी लखमा वारदात पर उठ रहे सवालों और षड्यंत्र के आरोपों से बिफरे हुए
हैं। भास्कर ने इन सवालों को लेकर आज उनसे बातचीत की। वारदात के बाद इस बात
की जबर्दस्त चर्चा है कि नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा, प्रदेश कांग्रेस
अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल को तो मार डाला, पर लखमा को
जिंदा जाने दिया। भास्कर ने कोशिश की कि इस बारे में सीधे लखमा से ही
जानकारी ली जाए।
इस बारे में सवाल पूछते ही बिफर गए लखमा ने कहा कि नक्सलियों ने उनको
क्यों जिंदा जाने दिया, यह तो आप नक्सलियों से ही पूछें। मैं इस बारे में
क्या बताऊं। नक्सली गोलियां दाग रहे थे, चारों तरफ लाशें बिखरी हुईं थीं।
मैंने पटेल को लेकर जा रहे नक्सलियों को रोकने की कोशिश की थी। पर उन्होंने
मुझे भी धमका दिया।
केंद्रीय राज्यमंत्री चरणदास महंत, नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे समेत
बाकी लोग इस वारदात के पीछे राजनीतिक षड्यंत्र होने की बात कर रहे हैं। इस
बारे में लखमा का कहना था कि षड्यंत्र था या नहीं, इस बारे में मैं क्या
बोल सकता हूं। मैं कोई जांच एजेंसी तो हूं नहीं, जो किसी नतीजे पर पहुंच
जाउं। लखमा इस समय राजधानी के एक अस्पताल में भर्ती हैं। गोलीबारी के बीच
घटनास्थल पर जिस तरह वे मोटरसाइकिल का इंतजाम करके सुरक्षित दरभा थाने
पहुंचे, उसे लेकर भी कई सवाल हैं। इस बारे जब भास्कर ने सवाल पूछे तो वे
उखड़ गए।
लखमा ने कहा कि यह मोटरसाइकिल उनको घटनास्थल के पास रोड़ के किनारे
खड़ी मिली थी। उसमें चाबी लगी हुई थी। वह उसे लेकर सीधे थाने पहुंच गए।
थाना पहुंचकर पता चला कि यह मोटरसाइकिल थाने में पदस्थ पुलिस कर्मचारी की
थी, जिसे लेकर एक मीडिया कर्मी घटनास्थल चला गया था। वारदात के तुरंत बाद
गाड़ी से झिरम घाटी तक पहुंचने के जोखिम को देखते हुए मीडिया कर्मी ने इस
मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया था। चाबी गाड़ी में ही लगा रहना उनके लिए
वरदान साबित हुआ। वह जान बचाने और पुलिस को सूचित करने के लिए वहां से निकल
भागे। हमले में लखमा के चेहरे पर कार की खिड़की का कांच टूटकर चेहरे पर कई
जगह घुस गया था।
माओवादियों की ओर से भेजे गए एक पत्र में कहा गया है कि दमन की
नीतियों को लागू करने में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की समान भागीदारी
है और इसलिए संगठन ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को निशाने पर लिया है। यह
विज्ञप्ति दंडकारण्य विशेष जोनल कमेटी के प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी की ओर से
भेजी गई है। पत्र में लिखा गया है कि राज्य के गृहमंत्री रह चुके छत्तीसगढ़
प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल जनता पर दमनचक्र चलाने
में आगे रहे थे। पटेल के समय में ही बस्तर क्षेत्र में पहली बार अर्ध-सैनिक
बलों की तैनाती की गई थी।
पत्र में आगे लिखा है कि ये भी किसी से छिपी हुई बात नहीं कि लम्बे
समय तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल में रहकर गृह विभाग समेत विभिन्न अहम
मंत्रालयों को संभालने वाले वीसी शुक्ल भी जनता के दुश्मन हैं, जिन्होंने
साम्राज्यवादियों, दलाल पूंजीपति और ज़मींदारों के वफादार प्रतिनिधि के रूप
में शोषणकारी नीतियों को बनाने और लागू करने में सक्रिय भागीदारी की।
आदिवासी नेता कहलाने वाले महेन्द्र कर्मा का ताल्लुक एक सामंती मांझी
परिवार से रहा। कर्मा का परिवार भूस्वामी होने के साथ-साथ आदिवासियों का
अमानवीय शोषक व उत्पीड़क रहा है। छत्तीसगढ़ के मुंख्यमंत्री रमन सिंह और
महेन्द्र कर्मा के बीच कितना अच्छा तालमेल रहा, इसे समझने के लिए एक तथ्य
काफी है - कि मीडिया में कर्मा को रमन मंत्रिमंडल का सोलहवां मंत्री कहा
जाने लगा था।
बस्तर में जो तबाही मचाई गई और जो क्रूरता बरती गई, उसकी तुलना में
इतिहास में बहुत कम उदाहरण है। कुल एक हजार से ज्यादा लोगों की हत्या कर,
640 गांवों को कब्रगाह में तब्दील कर, हजारों घरों को लूट कर, मुर्गों,
बकरों, सुअरों आदि को खाकर और दो लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित कर, 50
हजार से ज्यादा लोगों को बलपूर्वक राहत शिविरों में घसीटकर सलवा जुडूम जनता
के लिए अभिशाप बना था। सलवा जुडूम के दौरान सैकड़ों महिलाओं के साथ
सामूहिक बलात्कार किया गया।
हमले को सही ठहराते हुए दावा किया गया है कि एक हजार से ज्यादा
आदिवासियों की ओर से बदला ले लिया है जिनकी सलवा जुडूम के गुण्डों और
सरकारी सशस्त्र बलों के हाथों हत्या हुई थी। इस हमले का लक्ष्य मुख्य रूप
से महेन्द्र कर्मा तथा कुछ अन्य कांग्रेस नेताओं का खात्मा करना था।
राज्य सरकार ने महेंद्र कर्मा और नंदकुमार पटेल के परिवार को सुरक्षा
व्यवस्था जस की तस बनाए रखने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह
ने पुलिस मुख्यालय को निर्देश दिया है कि कर्मा के परिवार को जेड प्लस और
पटेल के परिवार को जेड श्रेणी की सुरक्षा यथावत मिलती रहेगी। दोनों नेताओं
को यह सुरक्षा दी जा रही थी।
दोनों रास्तों पर थी विस्फोट की तैयारी
नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमले की तैयारी दो
रास्तों पर कर रखी थी। सुकमा से गादीरास होकर गुजरने वाली सड़क पर भी पेड़
काटकर एंबुश लगाया गया था। इसका खुलासा तब हुआ जब रविवार को पुलिस पार्टी
सर्चिंग पर निकली। जवान जब रास्ते से पेड़ हटाने लगे तो नक्सलियों ने उन पर
फायरिंग शुरू कर दी। काफी देर तक दोनों ओर से चली गोलीबारी के बाद नक्सली
भाग खड़े हुए।
कांग्रेस की केशलूर में सभा होने वाली थी। नक्सलियों ने दोनों मार्गों
पर हमले की प्लानिंग कर रखी थी। कांग्रेसी नेताओं का काफिला केशलूर के लिए
रवाना हुआ तो नेताओं के बीच गादीरास की ओर जाने की भी चर्चा हुई।
नक्सलियों की हिट-लिस्ट में शामिल नेताओं ने रूट और गाड़ी बदलकर चलने की
बात छेड़ी थी। उनका तर्क था कि घोषित रास्ते से जाना खतरनाक हो सकता है।
कांग्रेसी नेता अवधेश गौतम का गादीरास मार्ग पर नकुलनार में घर है। बड़े
नेताओं को अपने इलाके में ले जाने की मंशा से उन्होंने यह बात निकाली।
लेकिन फिर नेशनल हाइवे के दरभा वाले रास्ते को सुरक्षित समझा गया, क्योंकि
यहां 10-15 किमी के रास्ते में चार थाने हैं। सभा भी इसी रास्ते में होनी
थी।
रात गुजारने से पहले ही हो गया हादसा
सुकमा में कांग्रेस की सभा के बाद महेंद्र कर्मा ने अपने पीएसओ से
जगदलपुर में रात गुजारनी की बात कही थी। शासकीय विश्राम गृह में उनके लिए
कमरा भी बुक था। लेकिन जगदलपुर पहुंचने के पहले ही नक्सलियों ने उनकी हत्या
कर दी।
बस्तर टाइगर की सुरक्षा में लगे उनके पीएसओ लखन सिंग ने दैनिक भास्कर
को बताया कि कांग्रेस की सभा खत्म होने के बाद महेंद्र कर्मा बस्तर परिवहन
संघ के अध्यक्ष मलकीत सिंग के साथ थे। इस गाड़ी को खुद मलकीत चला रहे थे।
उनके साथ गाड़ी में केवल एक ही पीएसओ था। इस गाड़ी के पीछे वाली गाड़ी पर
मैं और दूसरे पीएसओ सवार थे। जैसे ही नक्सलियों ने गाडिय़ों पर गोलियां
बरसानी शुरू की हमने साहब को कवर करना शुरू कर दिया। लगभग एक घंटे तक उनकी
सुरक्षा में लगे जवानों ने नक्सलियों पर जवाबी फायरिंग की। इसी बीच हमला
तेज होता गया और लोग मरने लगे। सुरक्षा कर्मियों की गोलियां भी खत्म होने
लगी तो साहब खुद ही गाड़ी से बाहर आ गए। उन्होंने हाथ जोड़कर नक्सलियों से
कहा कइयों को मार चुके हो। अब बस करो। मैं ही महेंद्र कर्मा हूं जहां ले
जाना चाहते हो ले चलो मैं सरेंडर करता हूं। एक घंटे की गोलीबारी के बीच अगर
कहीं से भी मदद मिल जाती, नक्सलियों से लड़ रहे जवानों का हौसला बढ़ जाता।
दूसरे जवान भी हमले के बीच पहुंच जाते तो हम नक्सलियों पर भारी होते और
साहब की जान भी बच जाती।
नक्सलियों ने हमले की जगह भी छांटकर चुनी
परिवर्तन यात्रा से लौट रहे कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला की जगह
भी नक्सलियों ने बहुत सोच-समझकर चुनी थी। उन्होंने इस बात का पूरा इंतजाम
कर लिया था कि इस घेरेबंदी में फंसे नेता या पुलिस पार्टी मदद के लिए भी
किसी से संपर्क न कर पाएं। झीरम घाटी का यह हिस्सा ऐसा है, जहां पर सड़क के
दोनों तरफ दो से ढाई किलोमीटर तक मोबाइल नेटवर्क ही नहीं मिलता। हमले में
घायल लोगों ने भी बताया था कि उनको वहां मोबाइल नेटवर्क ही नहीं मिल रहा
था। घाट में चढ़ाई वाले इस हिस्से में तीखा मोड़ है, जहां वाहनों की रफ्तार
को मजबूरन घटाना पड़ता है। एके 47, एसएलआर से लैस नक्सलियों ने वहां पर
बमुश्किल 10 से 13 मिनट ही फायरिंग की। इसी गोलीबारी में काफिले में शामिल
15 से ज्यादा लोग मारे गए।
रोड ओपनिंग पार्टी नहीं भेजना सबसे बड़ी चूक
दरभा में नक्सलियों के खूनी खेल के लिए जितना जिम्मेदार इंटेलीजेंस की
नाकामी को माना जा रहा है, उतनी ही गंभीर लापरवाही पुलिस की है। कांग्रेसी
जत्थे में नक्सली हिट लिस्ट में शामिल महेंद्र कर्मा और नंद कुमार पटेल थे
और काफिला धुर नक्सली इलाके से गुजरने वाला था, इसके बावजूद पुलिस ने उस
रास्ते की जांच के लिए रोड ओपनिंग पार्टी (आर ओपी) नहीं भेजी।
रिटायर्ड पुलिस अफसरों का मानना है कि नक्सली खतरे को ध्यान में रखकर
अगर रोड पर आर ओपी करवाई जाती तो नक्सली नेशनल हाईवे में दिनदहाड़े इतनी
बड़ी वारदात को अंजाम नहीं दे पाते। जगदलपुर से पटेल, कर्मा व विद्याचरण
शुक्ल जैसे दिग्गज नेता सुकमा जा रहे थे। इसके बावजूद उस रास्ते पर आर ओपी
नहीं करवाई गई। यदि पेट्रोलिंग करवाई भी गई तो महज खानापूर्ति के लिए।
केवल 20 मिनट ही देर से चल रहा था काफिला : डीजीपी भले ही यह कह रहे
हैं कि आर ओपी की गई थी। या हो सकता है कि कांग्रेस नेताओं काफिला तयशुदा
कार्यक्रम से लेट हो गया हो, इस वजह से जवानों सर्चिंग करके निकल गए।
उन्होंने यह कहकर संकेत दिया कि जवानों की सर्चिंग के बाद नक्सली वहां
पहुंचे और उन्होंने एंबुश लगाया। इसका जवाब जानने के लिए भास्कर की टीम ने
कांग्रेस के सुकमा कार्यक्रम का चार्ट देखा और घायलों से बातचीत की। पड़ताल
के बाद पता चला कि सभा सुकमा में दोपहर एक बजे शुरु हुई। उन्हें 4 बजे तक
दरभा पहुंचना था। वहां केसरु में कार्यक्रम था। घटना लगभग 4 बजे घटी। वहां
से केसरु 14 किलोमीटर दूर है। इससे यह स्पष्ट है कि केवल 15-20 मिनट ही
काफिला देरी से चल रहा था। इससे यह स्पष्ट है कि आर ओपी या तो नहीं करवाई
गई। और अगर पेट्रोलिंग भेजी भी गई तो केवल औपचारिकता निभाने के लिए।
Source: http://www.bhaskar.com/article/CHH-RAI-naxalite-attacks-in-chhattisgarh-4276230-PHO.html?seq=7&RHS-badi_khabare=
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