Published on: गुरु | फ़रवरी २०, २०१४
नई दिल्ली | अरविंद केजरीवाल और
मनीष सिसोदिया फर्जी दस्तखत कर भुगतान लेते रहे हैं? एसे 36 घपले गृह
मंत्रालय ने अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के पकड़े हैं।
मनीष
सिसोदिया की पत्नी सीमा सिसोदिया को ‘कबीर’ की तरफ से 12,000 हजार रुपए
बतौर किराया दिया जाता था। मतलब कि मनीष जिस संस्था को चलाते थे, उसके
कार्यालय का किराया अपनी पत्नी के नाम से लेते थे।
अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या वे एनजीओ की
दलाली करते हैं? जनता के पैसे को अपने परिवार को गैरकानूनी तरीके से देते
हैं? बिलों में हेराफेरी करते हैं? इनकी संस्था 'कबीर की एक जांच रिपोर्ट
गृह मंत्रालय के पास तैयार है, जिसमें कई राज बंद हैं। सवाल है कि आखिर
कार्रवार्इ क्यों नहीं हो रही है?
जार्ज फर्नांडीस ने संसद में पहला सवाल 20 मार्च, 1967 को पूछा। जार्ज के पहले सवाल में उनकी जो चिंता थी, वह आज भी प्रासंगिक है। जार्ज फर्नांडीस का वह सवाल भी था, और आरोप भी। यह सवाल भारत के राजनैतिक दलों और संगठनों को अमेरिकी आर्थिक मदद के बारे में था। जार्ज की इस चिंता में कर्इ और सांसद भी शामिल थे। उसमें एके गोपालन, इंद्रजीत गुप्त, प्रो.हिरेन मुखर्जी और एसएम बनर्जी प्रमुख थे।
सवाल और आरोप कुछ इस तरह थे। क्या भारत सरकार को पता है कि किन-किन संगठनों को विदेश से आर्थिक मदद मिल रही है? उन्होंने कांग्रेस और कल्चरल फ्रीडम का नाम भी लिया। उस समय वर्ल्ड असेंबली ऑफ यूथ और इंडियन यूथ कांग्रेस के आर्थिक रिश्ते सवालों के घेरे में थे। राजीव गांधी की सरकार में आंतरिक सुरक्षा राज्य मंत्री अरुण नेहरू ने भी जांच करवार्इ और विदेशी मदद से चलने वाली संस्थाओं को जब कानून के दायरे में लाने लगे तो उनको मंत्री पद ही गवांना पड़ा। यह बात 1986 की है।
खैर, गृह मंत्रालय ने एक बार फिर जांच के लिए कदम उठाया है। जांच पूरी हो चुकी है। यह जांच रिपोर्ट अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की संस्था ‘कबीर’ के विदेश से मिलने वाले आर्थिक मदद पर है।
रिपोर्ट केजरीवाल और सिसोदिया के काले कारनामे को उजागर करती है। 'यथावत के पास रिपोर्ट की कॉपी है, लेकिन यहां सवाल उठता है कि इतने गंभीर आपराधिक घपलों के बाद गृह मंत्रालय कार्रवार्इ क्यों नही कर रहा? इसमें फर्जी दस्तखत से लेकर दूसरे एनजीओ की दलाली तक का मामला है। 'कबीर के 36 घपले गृह मंत्रालय ने पकडे हैं। लेकिन कार्रवार्इ की हिम्मत मंत्रालय नहीं जुटा पा रहा। क्या सत्ताधीशों का हाथ केजरीवाल और सिसोदिया के सिर पर है? इन सवालों के जवाब ढूढ़ने से पहले उस रिपोर्ट को समझने की जरूरत है।
‘कबीर’ संस्था जिस कबीरदास के नाम पर बनी, वो कहते हैं, “दोस पारये देखि करि, चला हसंत हसंत। अपने याद न आवर्इ, जिनका आदि न अंत।” शायद अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने कबीर दास की इस बात पर गौर नहीं किया। यदि गौर किया, तो अमल नहीं किया। अगर किया होता तो अपनी गैर सरकारी संस्था का नाम 'कबीर नहीं रखते। रखते भी, तो उस नाम पर घपले नहीं करते।
दिल्ली उच्च न्यायालय में 2012 में एक जनहित याचिका दायर कर गृह मंत्रालय से 'कबीर को विदेश से मिलने वाले आर्थिक मदद का ब्योरा मांगा गया। अदालत के आदेश के बाद गृह मंत्रालय ने 2 अगस्त, 2012 को अपने लेखा नियंत्रक जे.के. झा के नेतृत्व में एक जांच कमेटी का गठन किया।
इस कमेटी में गृह मंत्रालय एफसीआरए के लेखाकार प्रमोद कुमार, गृह मंत्रालय के एफसीआरए विभाग के सहायक निदेशक राकेश कुमार मित्तल और गृह मंत्रालय के एफसीआरए के लेखाकार जनार्दन शामिल हैं। इस कमेटी को 2005-06 से लेकर 2011-12 तक 'कबीर की जांच करनी थी। जांच के लिए गृह मंत्रालय की जांच टीम ने 21-22 अगस्त, 2012 को कबीर के पांडव नगर स्थित कार्यालय पर पहुंची। जांच पूरी हो चुकी है। इस जांच रिपोर्ट में 36 बिंदु हैं। ये सभी 'कबीर, केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पर सवाल खड़े करते हैं।
इनमें से कुछ घपले तो आपराधिक हैं। जांच में पाया गया है कि 'कबीर को 2005-6 से लेकर 2011-12 के बीच 2.20 करोड़ रुपए केवल विदेश से अनुदान के रूप में मिले। इस विदेशी मदद की खास बात यह है कि 80 लाख रुपए केवल प्रशासनिक मदद में खर्च हुए। जांच रिपोर्ट कहती है कि 'कबीर के संचालकों के पास न तो किसी भी कर्मचारी का नियुक्ति पत्र है। न ही वेतन भुगतान की रसीद। यहां सवाल यह उठता है कि आखिर जब किसी की नियुक्ति नहीं हुर्इ और वेतन भुगतान की रसीद भी नहीं है, तो आखिर पैसा कहां गया?
जांच रिपोर्ट आगे कहती है कि 1.15 करोड़ रुपए जन कल्याण के मद में खर्च हुए। इनमें से ज्यादातर खर्च आवागमन और सूचना के अधिकार के प्रचार-प्रसार पर खर्च किए गए। खास बात यह है कि 'कबीर ने अपने जो दस्तावेज रजिस्ट्रार ऑफिस में दिए हैं, उसमें ‘कबीर’ इसके लिए बनी ही नहीं थी। इस रिपोर्ट में 2008 से 2011 तक 'कबीर ने 18 लाख रुपए ‘सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं’ के मद में दिखाए। इस मामले में भी केजरीवाल और सिसोदिया के पास न तो कोर्इ इसका कारण है और न ही रसीद।
गृह मंत्रालय की इस जांच रिपोर्ट के अनुसार मनीष सिसोदिया दिल्ली सरकार में शिक्षा मंत्री रह चुके हैं। मनीष सिसोदिया की पत्नी सीमा सिसोदिया को ‘कबीर’ की तरफ से 12,000 हजार रुपए बतौर किराया दिया जाता था। मतलब कि मनीष जिस संस्था को चलाते थे, उसके कार्यालय का किराया अपनी पत्नी के नाम से लेते थे। ‘कबीर’ कार्यालय का पता है, डी-59, तीसरी मंजिल, पांडव नगर, नर्इ दिल्ली। सीमा सिसोदिया के पास रेन्ट अग्रीमेंट की रसीद भी नहीं थी। ये सभी अपने और अपने संबंधियों की जेब भरने में लगे थे।
मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल लगातार नैतिकता और र्इमानदारी की बात करते रहे हैं। जांच रिपोर्ट को देखने के बाद इनके दावे कोरे साबित होते हैं। जांच रिपोर्ट कहती है कि 17,900 रुपए मनीष सिसोदिया को संस्था के काम से देहरादून जाने के लिए दिया गया था। इसके लिए मनीष ने गाड़ी भी बुक करार्इ, लेकिन ये देहरादून नहीं गए, बल्कि बहराइच गए। यहां यह भी समझने की जरूरत है कि जिस संस्था को मनीष और केजरीवाल धन मुहैया करवाते थे, वह बहराइच की ही है। रिपोर्ट की माने तो यह आपराधिक मामला है।
रिपोर्ट कहती है कि 30 जुलार्इ, 2010 को 5000 रुपए शिमिरित ली को फिल्म और रिपोर्ट तैयार करने के लिए दिए गए। लेकिन, इस बात का जिक्र नहीं किया गया है कि यह भुगतान क्यों किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक शिमिरित ली के फर्जी दस्तखत कर पैसे निकाले गए। ‘कबीर’ प्रिया संस्था के साथ मीटिंग की बात करती है। यहां भी उस मीटिंग के नाम पर पैसे निकाले गए। लेकिन, वह मीटिंग कभी हुर्इ ही नहीं। क्योंकि, उनके अनुसार मनीष सिसोदिया के पास मीटिंग संबंधी कोई दस्तावेज नहीं हैं।
'कबीर राजनैतिक आंदोलनों में भी शुरू से सक्रिय रहा, और उस पर पैसे भी खर्च किए। रिपोर्ट के मुताबिक 2006 में जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे धरना दिया। उसका आयोजन 'कबीर ने किया। यह बात 24 नवंबर, 2006 के मीटिंग के मिनट में बतायी गर्इ है। किसी भी राजनैतिक आंदोलन को आयोजित करना एफसीआरए के तहत एक आपराधिक मामला है। यहां ये बात साफ नजर आती है कि केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने विदेश से पैसे भारत में राजनैतिक आंदोलन खड़ा करने के लिए ही ले रहे थे। इसलिए उसके हिसाब-किताब की भी जरूरत नहीं समझी। रिपोर्ट के हर बिंदु उनकी र्इमानदारी को बेपर्दा करती है।
Source: http://www.thepatrika.com/NewsPortal/h;jsessionid=1B10D676A0C2C8726A12B94E70390192?cID=uwouTElzlPA%3D
जार्ज फर्नांडीस ने संसद में पहला सवाल 20 मार्च, 1967 को पूछा। जार्ज के पहले सवाल में उनकी जो चिंता थी, वह आज भी प्रासंगिक है। जार्ज फर्नांडीस का वह सवाल भी था, और आरोप भी। यह सवाल भारत के राजनैतिक दलों और संगठनों को अमेरिकी आर्थिक मदद के बारे में था। जार्ज की इस चिंता में कर्इ और सांसद भी शामिल थे। उसमें एके गोपालन, इंद्रजीत गुप्त, प्रो.हिरेन मुखर्जी और एसएम बनर्जी प्रमुख थे।
सवाल और आरोप कुछ इस तरह थे। क्या भारत सरकार को पता है कि किन-किन संगठनों को विदेश से आर्थिक मदद मिल रही है? उन्होंने कांग्रेस और कल्चरल फ्रीडम का नाम भी लिया। उस समय वर्ल्ड असेंबली ऑफ यूथ और इंडियन यूथ कांग्रेस के आर्थिक रिश्ते सवालों के घेरे में थे। राजीव गांधी की सरकार में आंतरिक सुरक्षा राज्य मंत्री अरुण नेहरू ने भी जांच करवार्इ और विदेशी मदद से चलने वाली संस्थाओं को जब कानून के दायरे में लाने लगे तो उनको मंत्री पद ही गवांना पड़ा। यह बात 1986 की है।
खैर, गृह मंत्रालय ने एक बार फिर जांच के लिए कदम उठाया है। जांच पूरी हो चुकी है। यह जांच रिपोर्ट अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की संस्था ‘कबीर’ के विदेश से मिलने वाले आर्थिक मदद पर है।
रिपोर्ट केजरीवाल और सिसोदिया के काले कारनामे को उजागर करती है। 'यथावत के पास रिपोर्ट की कॉपी है, लेकिन यहां सवाल उठता है कि इतने गंभीर आपराधिक घपलों के बाद गृह मंत्रालय कार्रवार्इ क्यों नही कर रहा? इसमें फर्जी दस्तखत से लेकर दूसरे एनजीओ की दलाली तक का मामला है। 'कबीर के 36 घपले गृह मंत्रालय ने पकडे हैं। लेकिन कार्रवार्इ की हिम्मत मंत्रालय नहीं जुटा पा रहा। क्या सत्ताधीशों का हाथ केजरीवाल और सिसोदिया के सिर पर है? इन सवालों के जवाब ढूढ़ने से पहले उस रिपोर्ट को समझने की जरूरत है।
‘कबीर’ संस्था जिस कबीरदास के नाम पर बनी, वो कहते हैं, “दोस पारये देखि करि, चला हसंत हसंत। अपने याद न आवर्इ, जिनका आदि न अंत।” शायद अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने कबीर दास की इस बात पर गौर नहीं किया। यदि गौर किया, तो अमल नहीं किया। अगर किया होता तो अपनी गैर सरकारी संस्था का नाम 'कबीर नहीं रखते। रखते भी, तो उस नाम पर घपले नहीं करते।
दिल्ली उच्च न्यायालय में 2012 में एक जनहित याचिका दायर कर गृह मंत्रालय से 'कबीर को विदेश से मिलने वाले आर्थिक मदद का ब्योरा मांगा गया। अदालत के आदेश के बाद गृह मंत्रालय ने 2 अगस्त, 2012 को अपने लेखा नियंत्रक जे.के. झा के नेतृत्व में एक जांच कमेटी का गठन किया।
इस कमेटी में गृह मंत्रालय एफसीआरए के लेखाकार प्रमोद कुमार, गृह मंत्रालय के एफसीआरए विभाग के सहायक निदेशक राकेश कुमार मित्तल और गृह मंत्रालय के एफसीआरए के लेखाकार जनार्दन शामिल हैं। इस कमेटी को 2005-06 से लेकर 2011-12 तक 'कबीर की जांच करनी थी। जांच के लिए गृह मंत्रालय की जांच टीम ने 21-22 अगस्त, 2012 को कबीर के पांडव नगर स्थित कार्यालय पर पहुंची। जांच पूरी हो चुकी है। इस जांच रिपोर्ट में 36 बिंदु हैं। ये सभी 'कबीर, केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पर सवाल खड़े करते हैं।
इनमें से कुछ घपले तो आपराधिक हैं। जांच में पाया गया है कि 'कबीर को 2005-6 से लेकर 2011-12 के बीच 2.20 करोड़ रुपए केवल विदेश से अनुदान के रूप में मिले। इस विदेशी मदद की खास बात यह है कि 80 लाख रुपए केवल प्रशासनिक मदद में खर्च हुए। जांच रिपोर्ट कहती है कि 'कबीर के संचालकों के पास न तो किसी भी कर्मचारी का नियुक्ति पत्र है। न ही वेतन भुगतान की रसीद। यहां सवाल यह उठता है कि आखिर जब किसी की नियुक्ति नहीं हुर्इ और वेतन भुगतान की रसीद भी नहीं है, तो आखिर पैसा कहां गया?
जांच रिपोर्ट आगे कहती है कि 1.15 करोड़ रुपए जन कल्याण के मद में खर्च हुए। इनमें से ज्यादातर खर्च आवागमन और सूचना के अधिकार के प्रचार-प्रसार पर खर्च किए गए। खास बात यह है कि 'कबीर ने अपने जो दस्तावेज रजिस्ट्रार ऑफिस में दिए हैं, उसमें ‘कबीर’ इसके लिए बनी ही नहीं थी। इस रिपोर्ट में 2008 से 2011 तक 'कबीर ने 18 लाख रुपए ‘सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं’ के मद में दिखाए। इस मामले में भी केजरीवाल और सिसोदिया के पास न तो कोर्इ इसका कारण है और न ही रसीद।
गृह मंत्रालय की इस जांच रिपोर्ट के अनुसार मनीष सिसोदिया दिल्ली सरकार में शिक्षा मंत्री रह चुके हैं। मनीष सिसोदिया की पत्नी सीमा सिसोदिया को ‘कबीर’ की तरफ से 12,000 हजार रुपए बतौर किराया दिया जाता था। मतलब कि मनीष जिस संस्था को चलाते थे, उसके कार्यालय का किराया अपनी पत्नी के नाम से लेते थे। ‘कबीर’ कार्यालय का पता है, डी-59, तीसरी मंजिल, पांडव नगर, नर्इ दिल्ली। सीमा सिसोदिया के पास रेन्ट अग्रीमेंट की रसीद भी नहीं थी। ये सभी अपने और अपने संबंधियों की जेब भरने में लगे थे।
मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल लगातार नैतिकता और र्इमानदारी की बात करते रहे हैं। जांच रिपोर्ट को देखने के बाद इनके दावे कोरे साबित होते हैं। जांच रिपोर्ट कहती है कि 17,900 रुपए मनीष सिसोदिया को संस्था के काम से देहरादून जाने के लिए दिया गया था। इसके लिए मनीष ने गाड़ी भी बुक करार्इ, लेकिन ये देहरादून नहीं गए, बल्कि बहराइच गए। यहां यह भी समझने की जरूरत है कि जिस संस्था को मनीष और केजरीवाल धन मुहैया करवाते थे, वह बहराइच की ही है। रिपोर्ट की माने तो यह आपराधिक मामला है।
रिपोर्ट कहती है कि 30 जुलार्इ, 2010 को 5000 रुपए शिमिरित ली को फिल्म और रिपोर्ट तैयार करने के लिए दिए गए। लेकिन, इस बात का जिक्र नहीं किया गया है कि यह भुगतान क्यों किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक शिमिरित ली के फर्जी दस्तखत कर पैसे निकाले गए। ‘कबीर’ प्रिया संस्था के साथ मीटिंग की बात करती है। यहां भी उस मीटिंग के नाम पर पैसे निकाले गए। लेकिन, वह मीटिंग कभी हुर्इ ही नहीं। क्योंकि, उनके अनुसार मनीष सिसोदिया के पास मीटिंग संबंधी कोई दस्तावेज नहीं हैं।
'कबीर राजनैतिक आंदोलनों में भी शुरू से सक्रिय रहा, और उस पर पैसे भी खर्च किए। रिपोर्ट के मुताबिक 2006 में जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे धरना दिया। उसका आयोजन 'कबीर ने किया। यह बात 24 नवंबर, 2006 के मीटिंग के मिनट में बतायी गर्इ है। किसी भी राजनैतिक आंदोलन को आयोजित करना एफसीआरए के तहत एक आपराधिक मामला है। यहां ये बात साफ नजर आती है कि केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने विदेश से पैसे भारत में राजनैतिक आंदोलन खड़ा करने के लिए ही ले रहे थे। इसलिए उसके हिसाब-किताब की भी जरूरत नहीं समझी। रिपोर्ट के हर बिंदु उनकी र्इमानदारी को बेपर्दा करती है।
Source: http://www.thepatrika.com/NewsPortal/h;jsessionid=1B10D676A0C2C8726A12B94E70390192?cID=uwouTElzlPA%3D
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