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Friday 3 May 2013

पाकिस्तान की जेलें हैं नरक का दूसरा नाम


sarabjit_pakistan

विमल मिश्र

नई दिल्ली।। थर्ड डिग्री टॉर्चर, छोटी-छोटी बात पर हत्या, दिल दहला देने वाली सजाएं, जबरिया काम, धर्म परिवर्तन और पाकिस्तान के लिए जासूसी करने को मजबूर करना। अमानुषिकता के मामले में पाकिस्तान की जेलें किसी नरक से कम नहीं, खासकर तब जब वह बंदी भारतीय हो। पाकिस्तानी कैदियों द्वारा सरबजीत सिंह की निर्मम हत्या के संदर्भ में वहां की जेलों से छूटे भारतीय बंदियों की आपबीती पर आधारित स्पेशल स्टोरी
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भावेश परमार पिता की मौत के गम में कब विले पार्ले, मुंबई के अपने घर से अमृतसर पहुंच समझौता एक्सप्रेस में बैठे और बेहोशी के आलम में न जाने कब लाहौर पहुंच गए उन्हें याद भी नहीं। पांच साल वहां की कोट लखपत जेल में बंद रहकर अपनी राम कहानी लेकर लौटे। भावेश खुशकिस्मत थे जो लौट पाए। शहाबुद्दीन, कुलदीप सिंह, सुरजीत सिंह और कुलदीप सिंह को पाकिस्तानी अदालत से मिली सजा दस से पंद्रह साल पहले खत्म हो गई है, पर वे हालात के कैदी बने हुए हैं। बिहारी लाल को साबुन-तेल न मिलने की शिकायत करने की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी है। मक्कड़ सिंह अस्पताल जाकर जिंदा नहीं लौट नहीं पाए हैं।
तिहाड़ में पाकिस्तानी कैदियों की सुरक्षा बढ़ी

जर्मनी, जापान, उत्तर कोरिया और चीन के साथ पाकिस्तान उन देशों में आता है जहां की जेलें किसी नर्क से कम नहीं। थर्ड डिग्री टॉर्चर, दिल दहला देने वाली सजा, जबरिया काम, धर्म परिवर्तन करने या पाकिस्तान के लिए जासूसी करने को मजबूर करना, यहां तक कि छोटी-छोटी बात पर हत्या (सबसे नया मामला चमेल सिंह)। इन यातनाओं को सह न पाने से कई कैदी तो पागल तक हो गए हैं।

बाबा अली नवाज, मोहम्मद दीन और मोहम्मद सफदर- ये तीनों नाम पाकिस्तानी जेलों में मारे गए भारतीय बंदियों के हैं। बलबीर सिंह 16 साल पहले सूली पर लटका दिए गए, तो किरपाल सिंह कोट लखपत जेल में अब भी उसका इंतजार कर रहे हैं। 12 साल पहले लाहौर की कोट लखपत जेल से छूटे विनोद साहनी ने एक इंटरव्यू में बताया, 'कैदियों को जेल के भीतर मारकर उनकी लाशें फेंक दी जाती हैं।' उनके शवों तक को अंतिम संस्कार के लिए अस्पतालों में लंबा इंतजार करना पड़ता है।'
तस्वीरें: सरबजीत की मौत पर देश में गम और गुस्सा

पाकिस्तानी सरकार कहती है, उसकी जेलों में कोई भारतीय बंदी नहीं, पर इन दोनों देशों ही नहीं, इंग्लैंड और अमेरिका जैसे देशों के पास ऐसे सबूत हैं, जिनसे पिछले 40 सालों में इन जेलों में 1965 और 1971 के अनेकों युद्धबंदियों के यातनापूर्ण जीवन बिताने की बात सिद्ध होती है। सालों पहले करगिल में कैप्टन कालिया के टॉर्चर जैसे और पिछले दिनों मेंढर सेक्टर में भारतीय सैनिकों का सिर कलम करने और अब सरबजीत सिंह पर जेल में कतिलाना हमले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि पाकिस्तान को सामान्य शिष्टाचार और मर्यादाओं तो छोड़, अंतरराष्ट्रीय कानूनों का भी ध्यान नहीं है।

मौत से भी बदतर
'.. मैने कोट लखपत जेल में भारतीय नजरबंदों की हालत देखी है। ... गंदा खाना, गंदे कपड़े। बहुत बार इंसान पागल हो जाते हैं, एक-दूसरे पर पत्थर मारने लगते हैं और बहुत सारे तो काबू के बाहर हो जाते हैं। ... कुछ मौत के लिए दुआ मांगते हैं।' यह आपबीती है वहां लंबी कैद के बाद छूटे मोहनलाल भास्कर की। पाकिस्तानी जेलों में भारतीय कैदियों की अमानुषिक यातनाओं का कच्चा चिठठा खोलने वाले प्रसंग हमने राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उनकी किताब 'मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था' से साभार लिए हैं।

'हवलदार अजीज ...ने... सामने के दरख्त से एक मोटी डाल तुड़वाई...। उसने दो जवान बुलाए। एक को मेरी टांग दबाए रखने को कहा और दूसरा पीठ पर बैठ गया। ... डेढ़ घंटा वे मुझे मारते रहे। ... करीब ही कहीं से बाबा समुंद सिंह की चीखें भी सुनाई दे रही थीं। लगता था, जैसे पांच-छह आदमी मिलकर उसे मार रहे हों। ... बाबा समुंद सिंह को उल्टे लटका दिया गया था। ... मेरे कपड़े उतरवाकर मेज पर खड़ा कर दिया गया। और दोनों हाथ छत पर लटक रहे रस्से के साथ पीछे कसकर बांध दिए गए। ... फिर नीचे से मेज खींच ली गई। ... अब छह फौजियों ने मुझे पीटना शुरू किया। ... सूबेदार मुहम्मद असलम एक इंच मोटी बेंत से मेरे पांव के तलवों पर और सूबेदार मुहम्मद असलम मेरी पिंडलियों पर वार कर रहा था। अजीज हवलदार के हाथ में कपड़े धोने वाला थापा था ...। हवलदार नूर खान मेरी पीठ पर डंडे बरसा रहा था और मेजर ऐजाज मकसूद एक बारीक शहतूत की छड़ी से मेरे सिर पर वार कर रहा था। दो सिपाही रस्से को धीरे-धीरे ऊपर खींच रहे थे। आखिरकार मैने जिस्म ढीला छोड़ दिया। ...मेजर ऐजाज ने मेरे मुंह पर पानी का जग फेंका और बोला, 'बेटे, यहां मर तो सकते हो, सो नहीं सकते। मैने पीने के पानी मांगा तो कहने लगा, '... राहे शहादत को ... दागदार क्यों करते हो?'

 '... मुंशी ने... मोटी सी गाली दी। ... किसी ने पीछे से हम पर कंबल डाला और धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया। फिर तो यह पता नहीं कि हमें कितने हाथ, किस-किस चीज से मार रहे थे।'

'सूबेदार शेर खान ... ने हुक्म दिया कि चारों कंबल तह करके सिर पर रखूं और सारी रात टहलता रहूं। उसने मेरे एक हाथ में हथकड़ी लगवा दी और गारद कमांडर को हुक्म दिया कि जब भी मैं टहलना बंद करूं, वह मुझे जंगले के पास घसीटकर थप्पड़ मारे। ... रात के तीन बजे मैं बेहोश होकर गिर पड़ा।'

'कई बार मुझसे यह कहा जाता कि मैं जानवरों की तरह हाथों का इस्तेमाल किए बगैर खाना खाऊं और चाय पीऊं। ... वह कसम खाकर कहा करता था कि वह मुझे सुअर बनाकर ही दम लेगा। ... अब मैं सोचता कि ये लोग मुझे मार तो देंगे ही, क्यों न बगावत ही कर दी जाए, ताकि जल्द ही मौत मिल सके। मैने उनके दिए हुए कपड़े फाड़ दिए और नंगा रहने लगा। ... खाना एक वक्त खाने लगा। ... एक रात उसने हुक्म दिया कि सुबह मेरी दाढ़ी का एक-एक बाल पकड़ कर नोचा जाए। मैं... अपने हाथों खुद दाढ़ी नोचने लगा। सारी रात बैठा यही करता रहा।'

'ठीक है। सूबेदार, आज से भास्कर का राशन थोड़ा बढ़ा दिया जाए। इसको एक चुटकी मिर्च पिसी हुई सुबह और शाम पीछे से खिलाई जाए।' ... फिर यह सिलसिला रोज का अमल बन गया। फिर बर्फ पर लिटाने का सिलसिला शुरू हुआ। इसके बाद एक दिन हाथ ऊपर को और पांव नीचे जकड़ दिए गए, पैर पर दहकता हुआ कोयला रख दिया गया।'

'हर कैदी की दिन में तीन बार पिटाई की जाती है। चक्की के पट्टे से बने हुए लंबे-लंबे छित्तर उनको मारे जाते हैं। लकड़ी का बना हुआ वह नौ इंच लंबा ... जबर्दस्ती ... घुसेड़ा ...। ...कमसिन लड़कों पर जेल के भंगी ...। दुनिया की किसी भी जेल में ऐसी गिरी हुई हरकत नहीं की जाती, जो उस जेल में....।'

हॉट प्लेट ट्रीटमेंट
' मियांवाली की कसूरी जेल में दिन की शुरुआत ही पांच कोड़ों से होती थी। शाम तक पांच किलो रस्सी बुनकर देनी होती। पाकिस्तानी सेना क्वार्टर गार्ड में मुझे एक ऐसी कुर्सी पर बिठाया गया जिसे इलेक्ट्रिक प्लेट से तपाया गया था। इसे वे 'हॉट प्लेट ट्रीटमेंट' कहते थे।

किशोरी लाल शर्मा
(उनकी किताब Untold story of a spy: My Years in a Pakistani Prison से)



पागल कर देने वाले हालात
'लाहौर की कोट लखपत जेल में जुल्फिकार अली भुट्टो की कोठरी को 10 फुट ऊंची दीवार बैरक एरिया से अलग करती थी। रोज आधी रात को उन्हें दीवार की दूसरी तरफ से भयानक चीख-चिल्लाहटें सुनाई पड़तीं। ये चीख-चिल्हाहटें 1971 के भारतीय युद्धबंदियों की थीं, जो पागल होने के करीब थे।'
(बीबीसी के सीनियर करेस्पॉन्डेंट विक्टोरिया शोफील्ड की किताब Bhutto Trial and Execution से)

अच्छे व्यवहार का यह बदला!
'पाकिस्तान जेलों में भारतीय युद्धबंदियों के साथ जो बीत रहा है, उसके विपरीत भारतीय जेलों में पाकिस्तानी युद्धबंदियों को आरामदायक और सुविधा संपन्न बैरकों में रखा गया है। उच्च सेनाधिकारियों का स्पष्ट निर्देश है कि उनके साथ मेहमान की तरह सलूक किया जाए।'
(ब्रिगेडयर मनमोहन शर्मा की किताब Indian Prisoners of War in Pakistan से।)

'अब मैं पाकिस्तान नहीं जाऊंगा। गया, तो वे मुझे फिर जासूसी के इलजाम में पकड़ लेंगे।'
सुरजीत सिंह,
31 वर्ष पाकिस्तानी जेल में बिताने के बाद रिहा कैदी

'मुझे बिजली के झटके और थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया जाता था।'
सुरिंदर कुमार,
15 साल बाद पाकिस्तानी जेल से रिहा

'जमीन पर लिटा कर हाथों से खींचना, उल्टे लटका देना, बदन पर कूदना, तब तक दौड़ाते रहना, जब तक कैदी बेहोश होकर गिर न जाए- हिंदुस्तानी कैदियों की हालत जानवरों से भी बुरी हैं। उन्हें किराए के गुंडों से भी पिटवाया जाता है।'
स्वर्ण लाल,
पाकिस्तानी जेल से छूटे युद्धबंदी

'पाकिस्तानी जेलों में बंद भारतीय कैदियों को न ढंग से खाने को मिलता है, न बीमार होने पर इलाज। ज्यादातर को मनोवैज्ञानिक इलाज की जरूरत है।'
रूपलाल,
पाकिस्तानी जेल से 25 साल बाद रिहा हुए कैदी


Source:  http://navbharattimes.indiatimes.com/india/national-india/pakistani-jail-situation-and-indian-prisoners/articleshow/19848156.cms

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