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Saturday 25 May 2013

तीसरी बार पीएम बनना चाहते हैं मनमोहन: डॉ. स्वामी


ThePatrikaदिल्ली |  डॉ.मनमोहन सिंह को केवल प्रधानमंत्री बने रहना है। वे तीसरी बार भी पीएम बनना चाहते हैं। यही वजह है कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के बीच दरार पड़ गई है।
 
अब नेहरू परिवार का भारतीय राजनीति में कई भविष्य नहीं है। राहुल गांधी में कोई खास समझ नहीं है। वैसे भी सोनिया गांधी ने इस परिवार में औरंगजेब की भूमिका निभाई है। जिस तरह औरंगजेब के बाद मुगल वंश की सत्ता धरासाई हो गई थी। वही हश्र इनका होने वाला है।– डॉ.सुब्रह्मण्यम स्वामी
सवाल- 
संयुक्त












 प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के गत नौ सालों के कार्यकाल के दौरान सरकार पर कई आरोप लगे। प्रधानमंत्री भी घेरे में आए। इसके बावजूद संप्रग की अध्यक्षा सोनिया गांधी विवादों से हमेशा दूर रहीं। अपने समय के अन्य नेताओं से वह कितनी अलग हैं? जवाब- सोनिया गांधी ने मीडिया को अच्छी तरह मैनेज किया। ऐसा नहीं है कि उनपर आरोप नहीं लगे। अब आप देखिए, उन्होंने अपनी शैक्षणिक योग्यता को लेकर ही झूठी जानकारी दी। एक जिम्मेदार पद पर बैठी महिला यदि अपने शपथ-पत्र में कहे कि उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए की डिग्री प्राप्त की है, फिर वह सूचना गलत निकले और पता चले की उन्होंने पांचवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है, इससे तो दूसरे देशों में हंगामा खड़ा हो जाता। लेकिन, हमारे देश में इसे गंभीरता से नहीं लिया गया।


केजीबी फाइनेंसिग का मामला हो, मंदिरों से मूर्ति की तस्करी की बात हो या फिर बोफोर्स घोटाले को ही देख लें। बोफोर्स मामले की जांच कर रहे अधिकारी ने तो यहां तक कहा था कि सोनिया गांधी से पूछताछ किए बगैर जांच पूरी नहीं हो सकती है। इसके बावजूद उनसे कोई पूछताछ नहीं हुई। मेरा स्पष्ट मानना है कि सोनिया गांधी का नाम सीधे तौर पर यदि कहीं नहीं आया तो इसके लिए मीडिया और देश के बुद्धिजीवी दोषी हैं। पवन बंसल और अश्विनी कुमार जैसे कई कैबिनेट मंत्री रहे जो उन्हें हिस्सा भेजा करते थे। पूर्व दूरसंचार मंत्री ए.राजा को प्रधानमंत्री ने स्वयं 2-जी की नीलामी करने को कहा था, पर सोनिया गांधी ने हस्तक्षेप कर उसे नीलामी करने से रोका। उसी तरह कोलगेट मामले में अहमद पटेल के दिशा-निर्देश पर सबकुछ हुआ। मैं कहना चाहता हूं कि आप पवन बंसल, अश्विनी कुमार, ए.राजा के पीछे तो पड़ते हैं, लेकिन सोनिया गांधी और पी.चिदंबरम जैसे लोगों को घेरे में लेने से डरते हैं।


सवाल- संसद में एक बार लालकृष्ण आडवाणी ने सोनिया गांधी और उनकी सरकार पर आरोप लगाए थे। तब इतना हंगामा हुआ कि उन्हें मांफी मांगनी पड़ी थी। हाल ही में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने उनपर हमले किए तो उन्हें भी जबर्दस्त प्रतिकार का सामना करना पड़ा। आखिर ऐसा क्यों होता है?

जवाब- मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही है कि मजबूती के साथ जवाब क्यों नहीं दिया जाता है। हो सकता है कि उनके दिमाग में कोई और बात होगी। शिष्टाचार का भाव होगा, पर यह बात तो सही है कि गुरुमूर्ति की अध्यक्षता में एक रिपोर्ट तैयार हुई थी, जिसमें सोनिया गांधी के बैंक खातों का जिक्र था। इस मसले को लेकर भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में गंभीर चर्चा हुई थी, लेकिन बात आगे क्यों नहीं उठी? इसका जवाब तो वही लोग दे सकते हैं। यदि मैं आगे बढ़कर कुछ बोलूंगा तो लोग आरोप लगाएंगे कि मेरी उनसे निजी रंजिश है, इसलिए आरोप लगा रहा हूं। या फिर राजनीति में शिष्टाचार भी कोई चीज होती है।


सवाल- यह भी देखने में आया है कि जब सोनिया गांधी के दामाद (रॉबर्ट वाड्रा) पर उंगली उठी तो पूरी संप्रग सरकार बचाव में खड़ी हो गई। मीडिया ने बात को उठाया, लेकिन राजनेता मामले को आगे नहीं बढ़ा पाए। ऐसा क्यों हुआ?


जवाब-  हां, इस मामले को अरविंद केजरीवाल ने उठाया था। लेकिन, प्रेस में बयान देने के बाद वे लोग चुप हो गए। मामले को आगे नहीं बढ़ाया। आखिर उन्होंने कोर्ट का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया। उनके खिलाफ केस दर्ज करना चाहिए था। मैं जिस मामले को उठाता हूं, उसे लेकर कोर्ट भी जाता हूं। अभी ‘द हिन्दू’ अखबार के संपादक की अमेरिकी नागरिकता के सवाल को लेकर पहले मैंने बयान दिया, फिर कोर्ट गया। इस मामले में कोर्ट ने नोटिस भी जारी कर दिया है। अब देर-सबेर फैसला होगा। केजरीवाल को भी लड़ाई बीच में नहीं छोड़नी चाहिए थी। ऐसी स्थिति में मेरी धारणा बनी है कि हमारे देश में बयानबाजी ज्यादा होती है। इसी प्रक्रिया में वाड्रा का मामला आया और चला गया।

मुझे मालूम है कि सोनिया परिवार में कलह है। बात यहां तक है कि वो रॉबर्ट वाड्रा को घर से निकाल सकती हैं। ऐसी स्थिति में यदि हम केवल वाड्रा पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे तो सोनिया गांधी को इसका लाभ मिलेगा। यही वजह है कि दस्तावेज होने के बावजूद मैंने इस मामले को उठाना जरूरी नहीं समझा। मेरा एक ही लक्ष्य है, जिस तरह अर्जुन को ‘पक्षी की पुत्लियां’ दिख रही थीं। उसी तरह मुझे भी केवल सोनिया गांधी का भ्रष्टाचार दिखाई देता है। दूसरी चीजें मुझे अधिक परेशान नहीं करती हैं।

सवाल- क्या पहले कोई सरकार इतने अधिक घोटालों में फंसी थी?
जवाब- पंडित जवाहरलाल नेहरू के जमाने में भी कई घोटाले हुए थे। इंदिरा गांधी के दौर में भी काफी घोटाले हुए। दरअसल, आज मीडिया इतना अधिक सक्रिय है और सोशल मीडिया के रूप में एक नया तंत्र सामने आ चुका है, जिससे खबरें तेजी से फैल रही हैं। नए-नए घोटाले सामने आ रहे हैं। इसलिए ऐसा महसूस होता है कि यह सबसे अधिक घोटालों का दौर है। हालांकि, मैं मानता हूं कि जो कुछ इन दिनों हुआ और हो रहा है, वह काफी दुखद है। आज यह बोलने से काम नहीं चलेगा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के दौर में भी ये सब हो रहा था। अरे, भई- आप सरकार में बैठे हैं। यदि राजग के दौर में हुआ था तो उनके खिलाफ कार्रवाई करें। केस करें। उनकी गलतियों को गिनाकर अपनी गलती छुपाना उचित नहीं है। जनता इन बातों को अच्छी तरह समझ रही है।


सवाल- संप्रग को चलाने की जिम्मेदारी सोनिया गांधी की है। वहीं सरकार चलाने की जिम्मेदारी मनमोहन सिंह की है। ऐसे में जो कुछ हो रहा है वह संप्रग की विफलता है या फिर सरकार की ?

जवाब- मेरा मानना है कि सरकार और संप्रग दोनों को चलाने की जिम्मेदारी सोनिया गांधी निभा रही हैं।

सवाल- क्या आप यह बताना चाहते हैं कि आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह केवल औपचारिकता निभा रहे हैं?
जवाब- डॉ.मनमोहन सिंह को केवल प्रधानमंत्री पद पर बने रहना है। वे तीसरी बार भी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। यही उनकी इच्छा है। इससे अधिक उनकी किसी चीज में दिलचस्पी नहीं है। यही वजह है कि दोनों के बीच दरार पड़ गई है।

सवाल- इसका मतलब तो यह हुआ कि देश में कोई सरकार काम नहीं कर रही है।
जवाब- अभी देश में सरकार भी नहीं है और पार्टी भी नहीं है। केवल सोनिया गांधी हैं। वैटिकन, पुराने सोवियत एजेंट हैं। आईएसआई है। कई देश विरोधी शक्तियां सक्रिय हैं।

सवाल- आप राजग के घटक दल हैं। सरकार में आएंगे तो महत्वपूर्ण पद आपके पास होंगे। उस समय क्या सोनिया गांधी के खिलाफ आपका अभियान चलता रहेगा? क्या आपके सहयोगी आपत्ति दर्ज नहीं करेंगे?
जवाब- मुझे कोई रोकता नहीं है। सभी जानते हैं कि मुझे जो सही लगता है, उसे मैं पूरा करता हूं। हां, यह जरूर संभव है कि मुझे कोई पद न दें। मंत्री न बनाएं। ऐसा पहले भी 1977 और 1998 में हो चुका है। 1998 में मुझे वित्त मंत्री बनना था। जयललिता भी चाहती थीं, लेकिन रोक दिया गया।


सवाल- आजादी के बाद अबतक भारत की राजनीति में नेहरू परिवार का काफी दखल रहा है। इस बदलते राजनीतिक माहौल में नेहरू परिवार की भूमिका को आप कैसे देखते हैं?
जवाब- अब नेहरू परिवार का भारतीय राजनीति में कई भविष्य नहीं है। राहुल गांधी में कोई खास समझ नहीं है। वैसे भी सोनिया गांधी ने इस परिवार में औरंगजेब की भूमिका निभाई है। जिस तरह औरंगजेब के बाद मुगल वंश की सत्ता धरासाई हो गई थी। वही हश्र इनका होने वाला है।
सवाल-कोलगेट मामले में सुप्रीम कोर्ट की जो जांच चल रही है, उसका राजनीतिक परिणाम आप क्या देखते हैं?
जवाब- आज एक रोष है। लोगों में गुस्सा है। वे विद्रोही हो रहे हैं। इस देश का मध्यम वर्ग उठ खड़ा हुआ है। बेशक वे अभी शांत हैं और हम पूरी तरह उसकी पहचान नहीं कर पा रहे हैं, पर इसका असर जजों पर भी हो रहा है। आखिर उनका भी परिवार है। वे भी इसी समाज से जुड़े हैं। ऐसे में वे अब सच्चाई को नजरअंदाज नहीं कर पा रहे हैं। कोर्ट समाज की बेचैनी को महसूस कर रहा है।


सवाल- इस संवैधानिक व्यवस्था में सुप्रीम कोर्ट की जो भूमिका है, क्या वह उसे निभा रहा है?
जवाब- आज कुछ लोग कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट हर काम में दखल दे रहा है। मैं याद दिलाना चाहता हूं कि संविधान में यह प्रावधान है कि जहां कहीं भी मनमानी होगी, सुप्रीम कोर्ट उसमें हस्तक्षेप कर सकता है।


सवाल- आज जो रोष है, वह राजनेताओं के प्रति है। दलों के प्रति है। या फिर व्यवस्था के प्रति है?
जवाब- यह रोष नीतियों और कार्य पद्धति के विरोध में है। इसके खिलाफ जो राजनेता संघर्ष कर रहे हैं, उनका सम्मान है। नरेंद्र मोदी का सम्मान हो रहा है, क्योंकि गुजरात में व्यवस्थित तरीके से सरकारी एजेंसियां कम कर रही हैं। सरकार में भ्रष्टाचार नहीं है। लोगों को जगह-जगह पैसे नहीं देने पड़ते हैं। इससे जनता खुश है, उन्हें व्यवस्था से कोई शिकायत नहीं है।

(डॉ.सुब्रह्मण्यम स्वामी से यह बातचीत रामबहादुर राय और ब्रजेश कुमार झा ने की है।)

Source: http://thepatrika.com/NewsPortal/h?cID=rwFZyIq2pxg%3D

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