जिन दिनों सिक्खों द्वारा मुगलों के अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा
रही थी, उन दिनों एक ऐसा योद्धा भी हुआ जिसने मुगलों के अजेय होने के भ्रम
को तोड़ा। गुरू गोबिंद सिंह के पुत्रों और मां की हत्या का बदला लेने वाले
और मुगलों को जबरदस्त टक्कर देने वाले इस वीर योद्धा का नाम बंदा सिंह
बहादुर था।
बंदा सिंह बहादुर का असली नाम लक्ष्मण दास था। सिक्खों के दसवें गुरू
गोबिंद सिंह ने ही उन्हें बंदा सिंह नाम दिया था। गुरु गोबिंद सिंह की
लक्ष्मण दास से मुलाकात महाराष्ट्र के नांदेड़ में गोदावरी नदी के किनारे
हुई थी।
गुरु गोबिंद सिंह से प्रभावित होकर लक्ष्मण दास ने सिक्ख धर्म कबूल किया।
सिक्ख धर्म के महान योद्धाओं और शहीदों की फेहरिस्त में शामिल बंदा सिंह बहादुर के बारे में जानिए और अधिक...
बंदा सिंह बहादुर का जन्म कश्मीर के रजौरी में 16 अक्टूबर सन् 1670 में हुआ था। उनका वास्तविक नाम लक्ष्मण दास (माधो दास बैरागी) था और वह राजपूर घराने से संबंध रखते थे।
15 साल की उम्र में शिकार करते हुए उनका हृदय परिवर्तन हुआ और वह जानकीप्रसाद नाम के सन्यासी के शिष्य बन गए। वह कुछ समय तक पंचवटी में रहे। इसके बाद वह नांदेड़ में गोदावरी के किनारे एक आश्रम बनाकर रहने लगे।
3 सितंबर सन् 1708 को लक्ष्मण दास की मुलाकात गुरू गोबिंद सिंह से हुई। गुरू गोबिंद सिंह ने उन्हें सिक्ख बनाया और बंदा दास का नाम दिया। कहा जाता है कि गुरू गोबिंद सिंह से मुलाकात के दौरान लक्ष्मण दास ने उन्हें कई तरीकों से अपमानित करने की कोशिश की लेकिन उनकी किसी भी युक्ति का प्रभाव गुरू गोबिंद सिंह पर नहीं पड़ा। लक्ष्मण दास उनसे काफी प्रभावित हुए और यहीं उन्होंने पहली बार स्वयं को गोबिंद सिंह का दास कहा।
उन दिनों सरहिंद के गवर्नर नबाव वजीर खान के अत्याचार आम जनता पर बढ़ते ही जा रहे थे। गुरू गोबिंद सिंह को उम्मीद थी कि बहादुर शाह अपने वादे को पूरा करेगा और वजीर खान को सजा देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जनता पर हो रहे अत्याचार को रोकने और अपने बेटों साहिबजादा जोरावर सिंह व साहिबजादा फतेह सिंह सहित माता गुजरी देवी की हत्या का बदला लेने का जिम्मा गोबिंद सिंह ने बंदा दास बहादुर को सौंपा।
मई, 1710 में उसने सरहिंद को जीत लिया और सतलुज नदी के दक्षिण में सिक्ख राज्य की स्थापना की। लेकिन उसका राज्य कम ही दिनों तक चल सका। बहादुर शाह ने दिसंबर 1710 को हमला कर उसे शिकस्त दी और सरहिंद को फिर से अपने कब्जे में ले लिया।
10 दिसंबर सन् 1710 को बहादुर शाह द्वारा बंदा सिंह बहादुर और उनकी सेना का पकड़ने का फरमान जारी किया गया। सन् 1715 में बादशाह फर्रूखसियर की फौज ने अब्दुल समद खान के नेतृत्व में बंदा सिंह और उनकी फौज को कई महीनों तक गुरदासपुर के नजदीक गुरूदास नंगल गांव में कई महीनों तक घेरे रखा। खाने की कमी के कारण मजबूर होकर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया।
सन् 1717 के शुरूआती दिनों में तकरीबन 794 योद्धाओं के साथ बंदा सिंह को दिल्ली लाया गया। 5 मार्च से 13 मार्च तक लगातार 9 दिनों तक रोजाना तकरीबन 100 सिक्खों को फांसी पर चढ़ाया गया। बंदा सिंह बहादुर को इस्लाम धर्म कबूल करने या मौत की सजा चुनने का विकल्प दिया गया। बंदा सिंह ने मौत की सजा स्वीकार की। बादशाह फर्रुखसियर के आदेश पर बंदा सिंह और उनके सैन्य अधिकारियों के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके मौत की सजा दी गई।
एक वीर योद्धा होने का साथ-साथ बंदा सिंह की कई कारणों से आलोचना भी की जाती है। कहा जाता है कि लोहगढ़ में बंदा सिंह ने अपनी सत्ता जमानी शुरू कर दी थी और स्वयं को सिक्खों के ग्यारहवें गुरू को रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया था।
Source: http://www.bhaskar.com/article/PUN-LUD-strange-and-interesting-story-of-banda-bahadur-singh-4106164-PHO.html?seq=4&HF-4=
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