अंग्रेजी और कुछ हिंदी चैनलों पर बैठे सेकुलरिज्म के वैतनिक-अवैतनिक प्रवक्ताओं/विश्लेषकों ने यही बताया कि चुनाव में सारी पार्टियां हार गई. कोई जीता ही नहीं. कांग्रेस हार गई क्योंकि वो सचमुच हार गई. झारखंड और कश्मीर में सीटें कम हो गई बेचारों की. जेएमएम इसलिए हार गई क्योंकि वो बीजेपी को रोक नहीं पाई. जनता परिवार दोनों राज्यों में खाता नहीं खोल सकी तो वो भी हार गई. कश्मीर में पीडीपी हार गई क्योंकि उसे बहुतम नहीं है. नेशनल कांफ्रेंस हार गई क्योंकि जनता का मूड उनके खिलाफ था. अब बच गई बीजेपी तो वो इसलिए हार गई क्योंकि जम्मू कश्मीर में मिशन 44 फेल हो गया गया और झारखंड में बहुमत तो है लेकिन जिस तरह से मोदी के जादू का हौवा बनाया गया उस मुताबिक सीटें नहीं आई. इसलिए सब हार गए.
देश में राजनीतिक विश्लेषक होने का मतलब सफाई से झूठ बोलना और प्रोपागंडा करना बन गया है. पूरे साल भर नंबर वन रहने वाला अंग्रेजी चैनल और देश के नंबर वन एंकर की जब महफिल सजती है तो ऐसे ऐसे राजनितिक विश्लेषक अवतरित होते हैं जिनकी बातें, भविष्वाणी और आंकलन हमेशा गलत साबित होती है. अगर चैनल अंग्रेजी है और विश्लेषकों की साख सेकुलर पत्रकारों की है तो उन पर सवाल उठाना ही भारत में पाप माना जाएगा. आज एक पाप मेरे खाते में भी. इस चैनल पर बैठने वाली एक वरिष्ठ पत्रकार की राजनीतिक समझ इतनी प्रखर है कि वो लोकसभा चुनाव में तीन दिन बनारस में रहने के बावजूद देश के नंबर वन चैनल पर झूम झूम के यह देश को बता रही थी कि “बनारस में बहुत टफ-कांटेस्ट है. कौन जीतेगा ये कहना मुश्किल है.. केजरीवाल जीत जाए तो इसमें मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा” बाकी एक्सपर्ट और भी प्रखर थे.. सबने एक स्वर में कहा: हां.. हां.. हां.. यही तो मैं बहुत दिन से कह रहा हूं. विश्लेषण की एक और वरिष्ठ देवी ने तो ये भी कह दिया “मोदी ने बनारस से चुनाव लड़कर गलती की” ….. अब देश में ऐसे ऐसे विश्लेषक होगें तो क्या होगा.. तीन दिन क्षेत्र में रह कर अगर इन्हें पौने चार लाख से जीतने वाला उम्मीदवार हारता हुआ दिखाई दे तो इससे बेहतर तो बनारस के चाय वाले हैं जो यह शुरु से कह रहे थे की मोदी तीन लाख से ज्यादा वोट से जीतेंगे. अब अपना देश ही ऐसा है तो क्या किया जाए... इन्ही विश्लेषकों से काम चलाना पड़ेगा लेकिन हैरत इस बात की है कि ऐसे ऐसे भंयकर विश्लेषक जिनका आंकलन कभी सच नहीं होता है वो लगातार देश के नंबर वन चैनल पर कैसे बने हुए हैं.
दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के प्रति तर्कहीन व रोगात्मक घृणा ही इनकी विशिष्ठता है. देश एक रोग से ग्रसित है कि जो जितना हिंदु संस्कृति-धर्म-आस्था-संगठन को गाली दे वो उनता ही बड़ा विश्लेषक, ज्ञानी व बुद्धिजीवी है. झारखंड का नतीजा साफ साफ था तो टीवी चैनलों और मीडिया ने इसका विश्लेषण नहीं किया. बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने का मौका जम्मू-कश्मीर के नतीजों ने दिया. लेकिन रिजल्ट आने के पहले से ही ये सेकुलर ब्रिगेड अपने हथियार लेकर तैयार बैठे थे. पीडीपी का एक छोटा से लीडर आया उससे देश के नंबर वन एंकर ने पूछा कि क्या आप बीजेपी के साथ सरकार बनाकर कश्मीर के लोगों के साथ विश्वासघात करेंगें? ..अच्छा... तो बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाना जनता के साथ विश्वासघात हो गया. अब ऐसी दलील पर क्या कहा जा सकता है. ऐसे सवाल को पूछना ही मानसिक विकृति है.
हैरानी की बात यह है कि देश के किसी भी विश्लेषकों की सच बताने की हिम्मत नहीं हुई कि कश्मीर में धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण हुआ. कश्मीर के जम्मु इलाके में हिंदुओं ने जहां बीजेपी को वोट दिया वहीं कश्मीर घाटी के मुसलमानों ने बीजेपी को हराने के लिए वोट दिया. दूसरी सच्चाई ये है कि कश्मीर में ये तथाकथित सेकुलर पार्टियों ने ध्रुवीकरण को अंजाम दिया. मोदी ने अपने भाषणों में किसी भी विवादित मुद्दे को नहीं उठाया. वो सिर्फ विकास के नाम पर वोट मांग रहे थे वहीं कश्मीर की घाटी में ये सेकुलर जमात के नेता ये भाषण दे रहे थे कि .. खुदा न खास्ता बीजेपी आ गई तो..... अल्लाह न करे लेकिन अगर बीजेपी जीत गई तो.. ये हो जाएगा वो हो जाएगा.. एक हिंदू की मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा. ये सब कश्मीर में चल रहा था. लेकिन टीवी के जरिए उत्तर प्रदेश और दिल्ली की भी खबर कश्मीर के लोगों को मिल रही थी. ये लोग बीजेपी के कट्टरवादी नेता की घर-वापसी और लव जिहाद साथ ही 2021 तक सारे मुसमलानों को हिंदू बना दिया जाएगा आदि बयानों को भी सुन रहे थे. कश्मीर के मुसलमान डर गए. उन्हें लगा कि वाकई में अगर बीजेपी आ गई तो अनर्थ हो जाएगा. यही वजह थी सेकुलर पार्टियां इस मुद्दे पर संसद में रोज हंगामा करती रहीं. टीवी पर रोज इन्हीं मुद्दों पर बहस हो रही थी. सेकुलर पार्टियां और इनकी प्रोपागंडा मिशनरी ने जबरदस्त कमाल दिखाया और कश्मीर के चुनाव को हिंदु मुस्लिम ध्रुवीकरण का अखाड़ा बना दिया.
इसके बावजूद बीजेपी को 25 सीटें आ गई. सारा गेम बिगड़ता देख इन लोगों ने मतदान के दिन दूसरा खेल शुरु कर दिया. एक के बाद एक सभी लोग इस बात पर जोर दे रहे हैं कि किसी तरह से पीडीपी और बीजेपी का गठबंधन न हो वर्ना अनर्थ हो जाएगा. पीडीपी के सबसे बड़े नेता मुफ्ती साहब देश के गृहमंत्री रह चुके हैं. यह अब तक के उनके राजनीतिक जीवन का चरम है. ये बडे बड़े विश्लेषक ये भूल गए कि मुफ्ती साहब, बीजेपी की समर्थन से चलने वाली सरकार में गृहमंत्री थे. लेकिन आज सबकी यही दलील थी कि कश्मीर में सेकुलर पार्टियों का ही गठबंधन होना चाहिए. जो दल छह साल तक आपस में लड़ते रहे वो सेकुलरिज्म के नाम पर एक हो जाते हैं तो जनता के साथ कोई विश्वासघात नहीं होगा. दिलचस्प बात ये है कि जो दलील ये “स्वतंत्र” विश्लेषक अलग अलग टीवी स्टूडियों में बैठ कर दे रहे थे, रिजल्ट आते आते वही बात कांग्रेस कहने लगी. यह तो अजीबगरीब तालमेल है.
मीडिया की कुंठा भी विचित्र है. उन्हें तो यह बताना चाहिए था कि कश्मीर के चुनाव नतीजों का क्या मतलब है.. इसका देश की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा.. बीजेपी की वोट क्यों बढ़ गई. कांग्रेस का भविष्य क्या है.. जनता परिवार के पास क्या विकल्प है नई सरकार के पास क्या क्या चुनौतियां हैं आदि सवालों पर बातचीत करने के बजाए गठबंधन के अंकगणित को जोड़ तो़ड़ बता रहे थे कि बीजेपी को दूर रखकर कैसे सरकार बनाई जा सकती है..
-Manish Kumar, Editor, Chauthi Duniya
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