वंशवादी
पार्टी बहुत चिन्तित है कि भाजपा आगामी लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी
जैसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने जा रही है। वह भाजपा
को इस ह्यआत्मघातीह्ण निर्णय से पीछे हटाने के लिए मोदी के चरित्रहनन का
अभियान निरंतर चला रही है। कभी उन्हें फासिस्ट बताती है, कभी मुसलमानों का
हत्यारा, कभी मौत का सौदागर तो कभी किसी मित्र की पुत्री की सुरक्षा के नाम
पर राज्य की मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाती है। इस चरित्रहनन अभियान
में पूरा केन्द्रीय मंत्रिमण्डल, सीबीआई, राष्ट्रीय महिला आयोग, खरीदे हुए
पत्रकार सब जुटे हुए हैं।
नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध सबसे गंभीर आरोप है कि उन्हें इतिहास और संस्कृति का ज्ञान नहीं है। स्वयं को वंशवादी पार्टी का चाणक्य और शहजादे का गुरु मानने वाले दिग्विजय सिंह का आज का ही बयान पढ़ लीजिए। मध्य प्रदेश के चांचौड़ा विधानसभा क्षेत्र में चुनावी भाषण देते हुए दिग्विजय सिंह ने नरेन्द्र मोदी को एक नंबर का झूठा करार देते हुए कहा कि ह्यजिसे पार्टी का, देश के इतिहास व संस्कृति का ठीक से ज्ञान नहीं है भाजपा उसे देश का प्रधानमंत्री बनाना चाहती है। भाजपा के प्रति सहानुभूति के आंसू बहाते हुए दिग्विजय सिंह बोले कि मोदी को 10वीं और 12वीं कक्षा के छात्रों के स्तर का ज्ञान भी नहीं है। क्यों नहीं सुषमा स्वराज और मुरली मनोहर जोशी को एक माह का ट्यूशन देकर मोदी को देश का इतिहास पढ़ाना चाहिए?ह्ण(राष्ट्रीय सहारा 21 नवम्बर, 2013)। शुक्र है कि दिग्विजय इतना तो मानते हैं कि भाजपा में सुषमा स्वराज और मुरली मनोहर जोशी को इतिहास आता है। पर मोदी विरोधी अभियान में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले अंग्रेजी साप्ताहिक आउटलुक के ताजे अंक (नवम्बर 25, 2013) ने तो अपना आवरण पृष्ठ ही केवल मोदी के नहीं तो समूचे संघ-परिवार के ही इतिहास ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिए सजाया है। धुर संघ-विरोधी विनोद मेहता द्वारा संपादित इस अंग्रेजी साप्ताहिक, जिसके पन्ने कश्मीरी पृथकतावादियों एवं नक्सली हत्यारों की वकील अरुंधती राय के लिए हमेशा खुले रहते हैं, का यह अंक मोदी और हिन्दुत्व विरोधी सामग्री से भरा पड़ा है। इस अंक में सबा नकवी नामक स्टाफर ने पांच पृष्ठ लम्बी सामग्री केवल यह बताने के लिए संजोयी है कि नरेन्द्र मोदी का इतिहास के प्रति अज्ञान उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से विरासत में प्राप्त हुआ है, क्योंकि मा. स. गोलवलकर से लेकर दीनानाथ बतरा तक पूरा संघ-परिवार भारत और विश्व के इतिहास के प्रति घोर अज्ञान में डूबा हुआ है। संघ में इतिहास लेखन का कार्य संघ के प्रचारक व आडवाणी जैसे राजनेता करते हैं। इस लेख में मेरा नामोल्लेख भी किया गया है। यह सत्य है कि मुझे सबा नकवी का नहीं बल्कि किन्हीं आनन्द जी का फोन आया था उन्होंने ही मुझसे कुछ प्रश्न पूछे थे किन्तु जो कुछ मैंने कहा था वह तो उन्होंने छापा नहीं, और जो कुछ मैंने नहीं कहा था वह मेरे मुंह में रख दिया गया है। इस एक उदाहरण से ही इस लेख की प्रामाणिकता का अनुमान लगाया जा सकता है। सोनिया पार्टी का पिछलग्गू प्रेस मोदी के इतिहास-अज्ञान की कुछ झलकियां आउटलुक के मुख पृष्ठ पर ही चित्रों के माध्यम से दिखायी गयी हैं। वे इस प्रकार हैं 1. नेहरू जी 15 दिसम्बर, 1950 को बम्बई में सरदार पटेल के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंचे। 2. नेहरू ने सरदार की मृत्यु के बाद उनकी कार वापस ले ली 3. कांग्रेस श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अस्थियां विदेश से नहीं लायी 4. सिकन्दर को बिहारियों ने गंगा के तट पर रोक दिया था 5. उच्च शिक्षा का केन्द्र तक्षशिला बिहार में स्थित है। मोदी के इतिहास- अज्ञान के ये नमूने लगभग एक महीने से लगातार दोहराए जा रहे हैं। सोनिया पार्टी का पिछलग्गू प्रेस उनकी तोतारटन्त में लगा हुआ है। यह सिलसिला 27 अक्तूबर को पटना में मोदी की विशाल रैली के अगले दिन से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुरू किया। नीतीश ने अगले दिन के भाषण में इस बात पर लज्जित हुए बिना कि उनकी सरकार की सब कोशिशों के बावजूद मोदी की रैली में छह लाख से अधिक नर-नारी एकत्र हुए और सुरक्षा की कोई व्यवस्था न होने पर भी आतंकी धमाकों के बीच सात व्यक्तियों के प्राण गंवाकर भी वे पूरे समय अपनी जगह बैठे रहे, कोई भगदड़ नहीं मची, वरना इस भगदड़ में सैकड़ों जानें चली जातीं। इस अभूतपूर्व संयम और सुव्यवस्था के लिए रैली के आयोजकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करने और अपनी अक्षमता पर लज्जित होने के बजाय नीतीश ने मोदी के इतिहास ज्ञान की खिल्ली उड़ाकर अपनी पीठ ठोंकी। नीतीश ने मोदी की खिल्ली उड़ाने के लिए उनके भाषण के तथ्यों को जिस प्रकार तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया उसकी छानबीन करने के बजाए मोदी विरोधी मीडिया उन्हें ही सच बनाने के लिए जुट गया। 31 अक्तूबर के हिन्दुस्तान टाईम्स ने एक बड़ी स्टोरी में बाक्स बना कर उस झूठ को उभारा। अभी 19 नवम्बर के इकानामिक टाईम्स ने एक कार्टून के माध्यम से नीतीश द्वारा फैलाए गए झूठ को प्रचारित किया। क्या सचमुच ये सर्वज्ञानी पत्रकार इस तथ्य को नहीं जानते कि सरदार के अंतिम संस्कार के समय नेहरू के न पहुंचने का झूठ सबसे पहले दिव्य भास्कर नामक दैनिक पत्र ने छापा था, पर, उसने उस दिन अपनी भूल स्वीकारते हुए उसका खंडन कर दिया था। यह खंडन मीडिया में भी प्रचारित हुआ था किन्तु वह झूठ लगातार दोहराया जा रहा है। इसी प्रकार श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां यूरोप से भारत लाने का तथ्य है। यह सर्वज्ञात है कि श्यामजी कृष्ण वर्मा की मृत्यु 1930 में हुई थी और उनकी अस्थियां भारत लाने का कार्य नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री काल में हुआ था। नरेन्द्र मोदी की प्रेरणा से ही उनका स्मारक गुजरात में स्थापित हो सका। अत: अस्थियां लाने और उनको स्मारक में स्थापित कराने के कार्य से नरेन्द्र मोदी स्वयं जुड़े हुए थे। किन्तु किसी जनसभा में भाषण के तेज प्रवाह में उनके मुंह से श्यामजी कृष्ण वर्मा की जगह श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम निकल गया। भाषण समाप्त करते ही उन्हें अपनी भूल ध्यान में आयी और उन्होंने तुरन्त माईक पर आकर अपनी भूल का सुधार कर लिया। यह सब दृश्य कुछ टेलीविजन चैनलों पर दिखाया भी गया। किन्तु लाल बुझक्कड़ लोग इस छोटी सी भूल को इस तरह आलाप रहे हैं मानो मोदी को श्यामजी कृष्ण वर्मा और अपनी ही पार्टी के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बारे में भी जानकारी नहीं है। स्पष्ट है, इसके पीछे उनका भाजपा विरोधी दुराग्रह काम कर रहा है, न कि इतिहास प्रेम। विकृत प्रस्तुति पर, इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि पटना की जनसभा में मोदी द्वारा प्रस्तुत ऐतिहासिक तथ्यों की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा विकृत प्रस्तुति। मोदी ने पहला तथ्य कहा था कि सिकंदर बिहार से डर कर वापस चला गया। नीतीश ने इसे रंग दे दिया कि सिकंदर तो कभी बिहार आया ही नहीं था इसलिए बिहारियों ने उसे कब कहां हराया? इस विकृत प्रस्तुति के समर्थन में दिल्ली विश्वविद्यालय के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर डीएन झा का, जो स्वयं को गंभीर इतिहासकारों की श्रेणी में रखते हैं, उपयोग किया जा रहा है। 4 नवम्बर 2013 को बीबीसी की रेडियो सेवा पर प्रो. झा का इतिहास ज्ञान प्रसारित किया गया और अब 25 नवम्बर के आउटलुक में उन्हें फोटो सहित बार-बार उद्धृत किया गया। इसलिए आगे बढ़ने से पहले प्रो. झा के इतिहास ज्ञान की बानगी चख लें। बीबीसी के प्रसारण में उन्होंने फतवा दिया कि ह्यमोदी ने पटना में अपने भाषण में इतिहास का जो जिक्र किया उसमें सारी की सारी बातें गलत हैं। उनकी बातों की गंभीर इतिहास में कोई जगह नहीं है। मोदी ने कहा कि बिहार के लोगों ने सिकंदर को मार भगाया जबकि सिकंदर कभी बिहार गया ही नहीं।ह्ण यह कहने के बाद प्रो. झा अपने इतिहास ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए कहते हैं ह्यजहां तक साक्ष्यों की बात है तो सिकंदर ने सबसे प्रमुख लड़ाई पंजाब में झेलम के किनारे पोरस से लड़ी थी, उसके बाद उसकी सेना वापस चली गई, पूरब की तरफ तो वो कभी बढ़ा ही नहीं।ह्ण यह है प्रो. झा का इतिहास-ज्ञान। क्या सचमुच उन्हें यह पता नहीं कि जिन यूनानी और रोमन लेखकों ने भारत पर सिकंदर के आक्रमण की गाथा लिखी है उनके अनुसार सिकंदर झेलम नदी से व्यास नदी के तट तक अनेक छोटे-छोटे गणराज्यों से विकट युद्ध लड़ते हुए आगे बढ़ता गया। वह व्यास नदी के पार जाना चाहता था किन्तु अब तक छोटे-छोटे भारतीय राज्यों से लड़ते-लड़ते उसकी सेना थक चुकी थी, उसका मनोबल क्षीण हो गया था और इसलिए उसने व्यास नदी को पार करने से मना कर दिया क्योंकि गंगा नदी के पूर्व में विशाल नन्द साम्राज्य से युद्ध लड़ने का उसमें साहस नहीं था। उसकी ह्यनाह्ण सुनकर सिकंदर नाराज हो गया। वह अपने शिविर में बंद हो गया तब उसे उसके सेनापतियों ने बहुत समझाया बुझाया कि विजय के इन क्षणों में वापस लौट जाना ही श्रेयस्कर है। गंगा पूर्व के मगध साम्राज्य से टकराकर पराजय मोल लेना उचित नहीं होगा। यह मगध साम्राज्य नंद का राज्य था जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र या पटना थी। बिहार ही नंद की शक्ति का मुख्य आधार था इसलिए यदि नरेन्द्र मोदी ने एक विशाल जनसभा के भाषण में यह निचोड़ प्रस्तुत किया कि बिहार से डरकर सिकंदर भाग गया तो इसमें ऐतिहासिक दृष्टि से क्या असत्य कहा। मोदी एक जनसभा में भाषण दे रहे थे न कि एक क्लास रूम जहां यूनानी लेखकों के उद्धरणों को प्रस्तुत करना समीचीन होता। और प्रो. झा को यह जानकारी किस स्रोत से मिली कि पोरस से युद्ध के बाद उसकी सेना वापस चली गई, पूरब की तरफ तो वह कभी बढ़ा ही नहीं।
कुतर्कों का सहारा
प्रो. झा के इतिहास ज्ञान का एक और नमूना देखिये। बीबीसी को दिये गये इस साक्षात्कार में उनका पूरा जोर मौर्य साम्राज्य के संस्थापक कौटिल्य को शोषक वंचक व छोटा सिद्ध करना रहा है। वे कहते हैं कि चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में जिक्र किया है कि राजस्व एकत्रित करने के लिए अंधविश्वास वाली चीजों का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे कि कहीं कोई मूर्ति लगायी और वहां जो चढ़ावा आए उसे लेकर राजकोष में डाल दिया जाए। अपने इस तथ्य की पुष्टि में प्रो. झा पतंजलि के योग सूत्र का हवाला देते हैं। पातंजल योग सूत्र तो हमने पूरा पढ़ा है उसमें कहीं ऐसा कोई जिक्र नहीं है। प्रो. झा तुले हैं यह सिद्ध करने पर कि चाणक्य का समय स्वर्ण युग नहीं था, देश का असली एकीकरण चन्द्रगुप्त नहीं, अशोक ने किया था, चाणक्य किसानों से एक चौथाई राजस्व वसूल करता था जबकि अशोक ने लुम्बिनी जाकर उसे घटाकर छठवां हिस्सा कर दिया। यह कहना गलत है कि चन्द्रगुप्त का समय स्वर्णकाल था। प्रो. झा कहते हैं कि कौटिल्य ने कहा था कि किसी नए गांव में अधिक संख्या में शूद्र बसाये जाएं क्योंकि उनका शोषण करना आसान है। उनके ये सभी तथ्य इतिहास विरुद्ध हैं। अर्थशास्त्र में कृषकों को अधिक संख्या में बसाने की बात कही गयी है। अशोक की लुम्बिनी यात्रा धार्मिक यात्रा थी इसलिए वह राजस्व घटाने की घोषणा धार्मिक भावना की अभिव्यक्ति थी, राज्य की नीति नहीं। चाणक्य ने ही अपने अर्थशास्त्र में आसेतु हिमाचल चक्रवर्ती क्षेत्र की व्याख्या की है। इसी लक्ष्य को पाने का चन्द्रगुप्त ने अथक प्रयास किया। चन्द्रगुप्त ने जो सीमाएं छोड़ीं उनमें उनके पुत्र बिन्दुसार के 25 वर्ष लम्बे शासन काल में कोई वृद्धि नहीं हुई और अशोक ने भी कलिंग के अलावा कोई युद्ध नहीं लड़ा। पर प्रो. झा चाणक्य और चन्द्रगुप्त का इतना अवमूल्यन करने पर क्यों तुले हुए हैं? यह किस इतिहास-दृष्टि का परिचायक है? प्रो. झा के तर्कों का उत्तर हमने बीबीसी पर ही 8 नवम्बर को दिया है। जहां तक प्रो. झा के अपने इतिहास बोध का प्रश्न है वह अयोध्या में राम मन्दिर विवाद के समय प्रगट हो गया था। प्रो. झा वामपंथी इतिहसकारों की उस टीम के सदस्य थे जिसने पहले स्वयं स्वतंत्र इतिहासकार के रूप में मान्यता पाने की कोशिश की और अन्त में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के पाले में चले गये। इन इतिहासकारों ने 1992 में राष्ट्र के नाम एक रपट प्रकाशित की जिसमें सिद्ध किया गया कि राम कभी पैदा नहीं हुए, अयोध्या नाम का कोई नगर नहीं था और बाबरी मस्जिद का निर्माण एक खाली जगह पर हुआ था जहां पहले किसी मन्दिर या भवन का अस्तित्व नहीं था। आउटलुक अभी भी इस झूठ को उनके महान इतिहास ज्ञान के रूप में प्रस्तुत कर रहा है जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा 30 सितम्बर, 2010 के 5000 पृष्ठ लम्बे निर्णय में वहां राम मन्दिर के अस्तित्व के पुरातात्विक एवं दस्तावेजी साक्ष्य बड़ी संख्या में बताये गये हैं। उसी निर्णय में प्रो. झा की बिरादरी के वामपंथी इतिहासकारों के झूठ के अनेक उदाहरण भी विद्यमान हैं। उच्च न्यायालय के आदेश पर पुरातात्विक खुदाई में मस्जिद पूर्व के अवशेषों के सामने आने पर ही प्रो. इरफान हबीब और स्व. सूरजभान ने वहां पर बाबरी से पहले किसी कनाती मस्जिद के होने का झूठ गढ़ा था। आउटलुक में सबा नकवी को दक्षिण पंथी इतिहासकारों में सिर्फ आर.सी मजूमदार का नाम पता है। वे राधाकुमुद मुखर्जी, जदुनाथ सरकार, आशीवोदी लाल श्रीवास्तव, श्रीपाद शर्मा, एएस अल्तेकर, ईश्वरी प्रसाद, के.के. दत्त, गोविन्द चन्द्र पाण्डेय, वासुदेव शरण अग्रवाल, स्वराज्य प्रकाश गुप्त, डा. बीबी लाल आदि सैकड़ों राष्ट्रवादी इतिहासकारों की शायद उन्हें जानकारी ही नहीं है। संघ-परिवार, भाजपा या नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध यदि वे इतिहास-ज्ञान को ही अपना हथियार बनाना चाहते हैं तो कम से कम प्रो. डीएन झा जैसे कमजोर वामपंथी कंधों के कुतर्कों का सहारा न लें। (21.11.2013)
http://panchjanya.com/Encyc/2013/11/23/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8-.aspx?NB=&lang=5&m1=&m2=&p1=&p2=&p3=&p4=&PageType=N
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Monday, 2 December 2013
मोदी विरोधियों का इतिहास-ज्ञान?
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