आमिर खान को अपने टीवी कार्यक्रम सत्यमेव जयते का नाम बदल लेना चाहिए। जो कार्यक्रम सत्य नहीं अपितु झूठे भ्रामक प्रचार पर आधारित हो व किसी धर्म विशेष के प्रति दुराग्रह से ग्रस्त हो, उसे मुंडकोपनिषद के इस महान उदात्त उद्घोष का प्रयोग करने का कोई अधिकार नहीं है। कार्यक्रम के अनुसार छुआछूत हिंदुधर्म की उपज है। कई उदाहरण दिये गए जहां लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। वे उदाहरण वास्तव मेँ दुखद हैं किन्तु जिस तरह इस वीभत्स सामाजिक बुराई को हिंदुओं की धार्मिक बुराई के रूप मे प्रचारित कर हिन्दू धर्म से जोड़ा गया, वह अत्यंत निंदनीय है।
जो धर्म ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के दर्शन को मानता हो, जो प्रत्येक जड़-चेतन पदार्थ को ब्रह्म घोषित करता हो, वह धर्म भेदभाव कैसे कर सकता है?
'सत्यमेव जयते' मेँ भेदभाव का आरंभ मनुस्मृति से बताया गया। जिस सूक्त का उदाहरण दिया गया वह मनुस्मृति नहीं अपितु ऋग्वेद के दशम मण्डल का सूक्त है। यह सूक्त ब्रह्मांडपुरुष की भव्य विराटता को अत्यंत सुंदरता से प्रस्तुत करता है-
ब्रा॒ह्म॒णो॓உस्य॒ मुख॑मासीत् । बा॒हू रा॑ज॒न्यः॑ कृ॒तः ।
ऊ॒रू तद॑स्य॒ यद्वैश्यः॑ । प॒द्भ्याग्ं शू॒द्रो अ॑जायतः ॥
अर्थात- "ब्राह्मण इस (ब्रह्मांड पुरुष) का मुख हैं, क्षत्रिय भुजाएँ, वैश्य उदर तथा शूद्र चरण।"
कितनी सुंदर अभिव्यक्ति है...
“ब्राह्मण अपनी बुद्धि तथा विचार क्षमता द्वारा समाज को दिशा प्रदान करते हैं अतः वे ब्रह्मांडपुरुष का मुख हैं। क्षत्रिय रक्षा करने वाली भुजाओं की भांति हैं। शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाले उदर की भांति वैश्य वाणिज्य के माध्यम से समाज को आर्थिक ऊर्जा प्रदान करते हैं तथा शूद्र अपने कर्मबल व श्रम के माध्यम से चरणों की भांति समाज के शरीर को चलायमान रखते हैं।“
अब इसमे आपत्तिजनक क्या है यह मेरी समझ से परे है। क्या चरण शरीर का अपरिहार्य अंग नहीं है? जब चरण की बजाय अँग्रेजी में" Common People are the wheels of Society" कहा जाता है तब तो हमारे बुद्धिजीवी इन 'wheels' को समाजवाद का प्रतीक मान सर-आंखो पर बैठाते हैं! यह दोगला व्यवहार क्यों?
शायद इन पश्चिमी सोच वाले तथाकथित बुध्द्धिजीवियों को यह नहीं मालूम कि भारत मे किसी भी अंग को अपवित्र नहीं माना जाता। यदि भारत मेँ चरण मुख/मस्तक की तुलना मे हीन माने जाते तो क्यों यहाँ चरण स्पर्श की परंपरा रहती? (तब तो सिर से सिर भिड़ाकर अभिवादन किया जाता शायद)! और यदि पश्चिमी दृष्टि के हिसाब से आप चरणों को अपवित्र, हीन या अनावश्यक मानतें हैं तब तो आपको अपने-अपने पैर काटकर फेंक देने चाहिए !
कार्यक्रम मे जातिप्रथा की जमकर आलोचना की गयी। हाँ, जातिप्रथा हिन्दू समाज का आधारस्तंभ है किन्तु यह छुआछूत से भिन्न है। जातिप्रथा व छुआछूत मे वही अंतर है जितना कि गंगा माँ और गंदे नाले मेँ होता है। जातिप्रथा सामाजिक व्यवस्था है जिसकी वजह से प्रतिभा, कुशलता व कारीगरी एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी मे हस्तांतरित होती जाती थी। यही कारण था कि हजारों वर्ष भारत के कौशल, ज्ञान, कलाओं व कारीगरी का दुनिया मे कोई जवाब नहीं था क्योंकि जातिगत रूप से व्यवसाय अपनाने पर कौशल मे निरंतर वृद्धि होती जाती थी।
वहीं छुआछूत की घृणित प्रथा का स्त्रोत ‘हिन्दू धर्म’ नहीं अपितु इस्लामी आक्रमण है। जिन हिन्दू वीरों ने इस्लाम अपनाने से इंकार कर दिया उन्हे या तो मार डाला गया अथवा उन्हे व उनके परिवार को मानव-मल उठाने के घृणित कार्य हेतु मजबूर किया गया। धीरे-धीरे ये वीर हिन्दू समाज से काटकर अस्पृश्य घोषित हो गए क्योंकि मुस्लिम आक्रांता उन्हे घृणित मानते थे तथा हिन्दू उन्हे आक्रांताओं के यहाँ कार्य करने की वजह से बहिष्कृत कर देते थे। धीरे-धीरे कुछ नासमझ हिंदुओं ने स्वयं को उच्च व औरों को अधम घोषित करना प्रारम्भ कर दिया, फलस्वरूप हिंदुसमाज पतन की गर्त मेँ गिरने लगा।
अब आते हैं इस्लाम में रेसिज़्म अवधारणा पर। मैं जाति नहीं कहूँगी इसे क्योंकि Race या वर्गभेद जाति की अपेक्षा बहुत संकीर्ण विचारधारा से प्रेरित है। आमिर खान हिन्दू धर्म के खिलाफ जहर उगलते हुए बड़े गर्व से कहते हैं कि इस्लाम में जातिवाद नहीं है। जी हाँ इस्लाम मेँ जाति जैसी पवित्र संस्था नहीं है अपितु वहाँ वंशभेद तथा रंगभेद है। उदाहरण देखें-
1. इस्लामी कानून संख्या 025.3 के अनुसार खलीफा बनने हेतु आवश्यक 5 शर्तों मे से एक शर्त यह है कि खलीफा अरब मूल के कुरैशी कबीले का होना चाहिए। शहीह बुखारी (4.56.704) इसकी पुष्टि करते है कि अल्लाह ने कुरैश अरबों को दुनिया पर राज करने के लिए अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया है। अब भी यदि आमिर साहब सोचते हैं कि इस्लाम मे भेद नहीं है तो कोई भी गैर कुरैशी मुसलमान, खलीफा बनकर दिखाये।
2. हदीस मे कहा गया है कि अरब लोग अल्लाह की शुद्धतम, सर्वोत्तम रचना हैं।
3. जब आमिर हिंदु धर्म मे रोटी और बेटी के सम्बन्धों मेँ भेदभाव की बात कर रहे थे तो वे शरिया कानून भूल गए जिसके मुताबिक कोई भी गैर-अरब मुस्लिम किसी अरब मुस्लिम महिला से निकाह नहीं कर सकता क्योंकि वे उच्च रक्त की हैं और कई मुस्लिम देशों मेँ ऐसा करने पर सज़ा-ए-मौत निश्चित है।
4. यमन के मुस्लिमों मे वर्गभेद के रूप मेँ अख्दम वंश विद्यमान है जिन्हे स्थानीय समाज मेँ हीनतम माना जाता है।
5. यदि आप मानते हैं कि इस्लाम मेँ भेदभाव हिन्दू परंपरा की देन है तो भारत से बाहर इस्लामी देशों मेँ सुन्नी, शिया, वहाबी, अहमदिया आदि भेदभाव के चलते क्यों हजारों लोगों का कत्लेआम होता है? क्यों एक वहाबी खुद को अन्य मुस्लिमों से ऊंचा मानता है? क्यों सुन्नी लोग शियाओं का कत्ल करते हैं और क्यों इन तीनों वर्गों द्वारा अहमदिया मुस्लिमों को प्रताड़ित किया जाता है? हिन्दू तो कभी अरब मुल्कों मेँ भेदभाव की शिक्षा देने नहीं गए थे!
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उपर्युक्त उदाहरण देने का उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है अपितु लोगों की आंखो से पश्चिम द्वारा प्रदान अंधी सोच का पर्दा हटाकर सच्चाई से रूबरू करवाना है।
हमे यह स्वीकार है कि भेदभाव की घृणित प्रथा द्वारा लाखों व्यक्तियों को प्रताड़ित किया जाता रहा है किन्तु इस दुखद प्रथा के लिए धर्म को दोष देना दूषित मानसिकता का परिचायक है। छुआछूत प्रथा मानव की वह कुत्सित प्रवृत्ति है जिसके चलते वह दूसरों को खुद से हीन आँकता है इसलिए छुआछूत विश्व के हर कोने मेँ वंशभेद, रंगभेद, वर्गभेद के रूप मेँ लोगों को जकड़े हुए है। छुआछूत हेतु धर्म नहीं अपितु उसकी गलत व्याख्या करने वाले व्यक्ति दोषी हैं।
समय आ गया है कि भारत के लोग सत्यमेव जयते जैसे कार्यक्रमों द्वारा हिंदुधर्म के खिलाफ षड्यंत्रपूर्वक किए जा रहे दुष्प्रचार का जमकर विरोध करे तहा वेदो के उद्घोष- ‘सर्वं खल्विदम ब्रह्म’ अर्थात ‘सभी कुछ ब्रह्म है’ को पुनः आत्मसात कर छुआछूत तथा भेदभाव को उखाड़ फेंके।
Source: http://hindi.ibtl.in/blog/1116/satyameva-jayate-and-amir-khan
जो धर्म ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के दर्शन को मानता हो, जो प्रत्येक जड़-चेतन पदार्थ को ब्रह्म घोषित करता हो, वह धर्म भेदभाव कैसे कर सकता है?
'सत्यमेव जयते' मेँ भेदभाव का आरंभ मनुस्मृति से बताया गया। जिस सूक्त का उदाहरण दिया गया वह मनुस्मृति नहीं अपितु ऋग्वेद के दशम मण्डल का सूक्त है। यह सूक्त ब्रह्मांडपुरुष की भव्य विराटता को अत्यंत सुंदरता से प्रस्तुत करता है-
ब्रा॒ह्म॒णो॓உस्य॒ मुख॑मासीत् । बा॒हू रा॑ज॒न्यः॑ कृ॒तः ।
ऊ॒रू तद॑स्य॒ यद्वैश्यः॑ । प॒द्भ्याग्ं शू॒द्रो अ॑जायतः ॥
अर्थात- "ब्राह्मण इस (ब्रह्मांड पुरुष) का मुख हैं, क्षत्रिय भुजाएँ, वैश्य उदर तथा शूद्र चरण।"
कितनी सुंदर अभिव्यक्ति है...
“ब्राह्मण अपनी बुद्धि तथा विचार क्षमता द्वारा समाज को दिशा प्रदान करते हैं अतः वे ब्रह्मांडपुरुष का मुख हैं। क्षत्रिय रक्षा करने वाली भुजाओं की भांति हैं। शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाले उदर की भांति वैश्य वाणिज्य के माध्यम से समाज को आर्थिक ऊर्जा प्रदान करते हैं तथा शूद्र अपने कर्मबल व श्रम के माध्यम से चरणों की भांति समाज के शरीर को चलायमान रखते हैं।“
अब इसमे आपत्तिजनक क्या है यह मेरी समझ से परे है। क्या चरण शरीर का अपरिहार्य अंग नहीं है? जब चरण की बजाय अँग्रेजी में" Common People are the wheels of Society" कहा जाता है तब तो हमारे बुद्धिजीवी इन 'wheels' को समाजवाद का प्रतीक मान सर-आंखो पर बैठाते हैं! यह दोगला व्यवहार क्यों?
शायद इन पश्चिमी सोच वाले तथाकथित बुध्द्धिजीवियों को यह नहीं मालूम कि भारत मे किसी भी अंग को अपवित्र नहीं माना जाता। यदि भारत मेँ चरण मुख/मस्तक की तुलना मे हीन माने जाते तो क्यों यहाँ चरण स्पर्श की परंपरा रहती? (तब तो सिर से सिर भिड़ाकर अभिवादन किया जाता शायद)! और यदि पश्चिमी दृष्टि के हिसाब से आप चरणों को अपवित्र, हीन या अनावश्यक मानतें हैं तब तो आपको अपने-अपने पैर काटकर फेंक देने चाहिए !
कार्यक्रम मे जातिप्रथा की जमकर आलोचना की गयी। हाँ, जातिप्रथा हिन्दू समाज का आधारस्तंभ है किन्तु यह छुआछूत से भिन्न है। जातिप्रथा व छुआछूत मे वही अंतर है जितना कि गंगा माँ और गंदे नाले मेँ होता है। जातिप्रथा सामाजिक व्यवस्था है जिसकी वजह से प्रतिभा, कुशलता व कारीगरी एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी मे हस्तांतरित होती जाती थी। यही कारण था कि हजारों वर्ष भारत के कौशल, ज्ञान, कलाओं व कारीगरी का दुनिया मे कोई जवाब नहीं था क्योंकि जातिगत रूप से व्यवसाय अपनाने पर कौशल मे निरंतर वृद्धि होती जाती थी।
वहीं छुआछूत की घृणित प्रथा का स्त्रोत ‘हिन्दू धर्म’ नहीं अपितु इस्लामी आक्रमण है। जिन हिन्दू वीरों ने इस्लाम अपनाने से इंकार कर दिया उन्हे या तो मार डाला गया अथवा उन्हे व उनके परिवार को मानव-मल उठाने के घृणित कार्य हेतु मजबूर किया गया। धीरे-धीरे ये वीर हिन्दू समाज से काटकर अस्पृश्य घोषित हो गए क्योंकि मुस्लिम आक्रांता उन्हे घृणित मानते थे तथा हिन्दू उन्हे आक्रांताओं के यहाँ कार्य करने की वजह से बहिष्कृत कर देते थे। धीरे-धीरे कुछ नासमझ हिंदुओं ने स्वयं को उच्च व औरों को अधम घोषित करना प्रारम्भ कर दिया, फलस्वरूप हिंदुसमाज पतन की गर्त मेँ गिरने लगा।
अब आते हैं इस्लाम में रेसिज़्म अवधारणा पर। मैं जाति नहीं कहूँगी इसे क्योंकि Race या वर्गभेद जाति की अपेक्षा बहुत संकीर्ण विचारधारा से प्रेरित है। आमिर खान हिन्दू धर्म के खिलाफ जहर उगलते हुए बड़े गर्व से कहते हैं कि इस्लाम में जातिवाद नहीं है। जी हाँ इस्लाम मेँ जाति जैसी पवित्र संस्था नहीं है अपितु वहाँ वंशभेद तथा रंगभेद है। उदाहरण देखें-
1. इस्लामी कानून संख्या 025.3 के अनुसार खलीफा बनने हेतु आवश्यक 5 शर्तों मे से एक शर्त यह है कि खलीफा अरब मूल के कुरैशी कबीले का होना चाहिए। शहीह बुखारी (4.56.704) इसकी पुष्टि करते है कि अल्लाह ने कुरैश अरबों को दुनिया पर राज करने के लिए अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया है। अब भी यदि आमिर साहब सोचते हैं कि इस्लाम मे भेद नहीं है तो कोई भी गैर कुरैशी मुसलमान, खलीफा बनकर दिखाये।
2. हदीस मे कहा गया है कि अरब लोग अल्लाह की शुद्धतम, सर्वोत्तम रचना हैं।
3. जब आमिर हिंदु धर्म मे रोटी और बेटी के सम्बन्धों मेँ भेदभाव की बात कर रहे थे तो वे शरिया कानून भूल गए जिसके मुताबिक कोई भी गैर-अरब मुस्लिम किसी अरब मुस्लिम महिला से निकाह नहीं कर सकता क्योंकि वे उच्च रक्त की हैं और कई मुस्लिम देशों मेँ ऐसा करने पर सज़ा-ए-मौत निश्चित है।
4. यमन के मुस्लिमों मे वर्गभेद के रूप मेँ अख्दम वंश विद्यमान है जिन्हे स्थानीय समाज मेँ हीनतम माना जाता है।
5. यदि आप मानते हैं कि इस्लाम मेँ भेदभाव हिन्दू परंपरा की देन है तो भारत से बाहर इस्लामी देशों मेँ सुन्नी, शिया, वहाबी, अहमदिया आदि भेदभाव के चलते क्यों हजारों लोगों का कत्लेआम होता है? क्यों एक वहाबी खुद को अन्य मुस्लिमों से ऊंचा मानता है? क्यों सुन्नी लोग शियाओं का कत्ल करते हैं और क्यों इन तीनों वर्गों द्वारा अहमदिया मुस्लिमों को प्रताड़ित किया जाता है? हिन्दू तो कभी अरब मुल्कों मेँ भेदभाव की शिक्षा देने नहीं गए थे!
x
उपर्युक्त उदाहरण देने का उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है अपितु लोगों की आंखो से पश्चिम द्वारा प्रदान अंधी सोच का पर्दा हटाकर सच्चाई से रूबरू करवाना है।
हमे यह स्वीकार है कि भेदभाव की घृणित प्रथा द्वारा लाखों व्यक्तियों को प्रताड़ित किया जाता रहा है किन्तु इस दुखद प्रथा के लिए धर्म को दोष देना दूषित मानसिकता का परिचायक है। छुआछूत प्रथा मानव की वह कुत्सित प्रवृत्ति है जिसके चलते वह दूसरों को खुद से हीन आँकता है इसलिए छुआछूत विश्व के हर कोने मेँ वंशभेद, रंगभेद, वर्गभेद के रूप मेँ लोगों को जकड़े हुए है। छुआछूत हेतु धर्म नहीं अपितु उसकी गलत व्याख्या करने वाले व्यक्ति दोषी हैं।
समय आ गया है कि भारत के लोग सत्यमेव जयते जैसे कार्यक्रमों द्वारा हिंदुधर्म के खिलाफ षड्यंत्रपूर्वक किए जा रहे दुष्प्रचार का जमकर विरोध करे तहा वेदो के उद्घोष- ‘सर्वं खल्विदम ब्रह्म’ अर्थात ‘सभी कुछ ब्रह्म है’ को पुनः आत्मसात कर छुआछूत तथा भेदभाव को उखाड़ फेंके।
Source: http://hindi.ibtl.in/blog/1116/satyameva-jayate-and-amir-khan
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