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Sunday, 11 March 2012

Decline of Hindu population






‘हम पांच हमारे पचीस’......भारत में मुसलमान कई-कई पत्नियां रखकर अधिक सन्तानोत्पत्ति

 करके अपनी जनसंख्या बढ़ा रहे हैं !‘बस अगले बीस-तीस 


वर्षों में ही मुस्लिम जनसंख्या, ग़ैर-मुस्लिमों के बराबर हो जाएगी और मुसलमान फिर से सत्ता 

हथिया लेंगे।’ लेकिन अब ‘पैन इस्लामिक’ राजनीति के कारण दुनिया के कई देश इसकी चिंता 

कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुस्लिम राजनीति के ब़ढते कदम से यूरोपीय देश सर्वाधिक चिंतित हैं।

 भारत भी इससे कम चिंतित नहीं है, क्योंकि वैश्विक इस्लामी विस्तारवाद का सबसे पहला 

शिकार शायद उसे ही बनना प़डेगा।...केरल का कैथोलिक चर्च आगामी चौदह नवंबर ऐसे 

5,000 दंपतियों को सम्मानित करेगा, जिनके 5 से अधिक बच्चे हैं......। आज के विश्व में 

जनसांख्यिकी भी एक युद्ध है, जिसकी उपेक्षा करना आत्मघाती होगा। विशेषकर हिन्दुओं के

 लिए, जिनका दुनिया में मुख्यतः एक ही देश है...। किन्तु दुःख की बात है कि जब इस पर 

कोई हिंदू चिंता दिखाता है तो उसे ‘पिछड़ा’, ‘दकियानूसी’, ‘जनसंख्या विस्फोट से नासमझ’ या 

‘घृणा का प्रचारक’ आदि बताकर हँसी उड़ाई जाती है। सन् 1951 के बाद हिन्दू जनसंख्या तो 9 

प्रतिशत घट गयी जबकि मुस्लिम जनसंख्या 3 प्रतिशत बढ़ गयी है। अर्थात 1951 में देश में 

85 प्रतिशत हिन्दू थे वे आज 2001 में 80 से भी कम रह गये हैं। और मुस्लिम जनसंख्या 

1951 में 10 प्रतिशत थी वो 2001 में बढ़कर 13 प्रतिशत हो गयी है। देश के चालीस जिले 

50 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले हैं। जम्मू कश्मीर, केरल, पश्चिम बंगाल, असम, 

बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य जबर्दस्त मुस्लिम आबादी वाले राज्य हैं। बांग्लादेश से लगे 

सभी 10 जिले और 22 लोकसभा क्षेत्र मुस्लिम बहुल हो गये हैं। असम के 6 जिले तथा 126 में 

से 40 विधान सभा क्षेत्र मुस्लिम प्रभुत्व वाले बन गये हैं। पश्चिम बंगाल के 28 हजार गांवों में

 से 8 हजार गांवों में हिन्दू अत्यन्त अल्प संख्या में हैं तथा 10 जिले 24 प्रतिशत से अधिक 

मुस्लिम आबादी वाले बन चुके हैं। उत्तर प्रदेश के 70 में से 19 जिले 20 प्रतिशत से अधिक 

मुस्लिम आबादी वाले हैं। हरियाणा की मुस्लिम जनसंख्या तीन गुनी हो गई है। जम्मू कश्मीर

 के 7 जिले 90 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी वाले हैं। सम्पूर्ण केरल में मुस्लिम 

जनसंख्या 19.2 प्रतिशत हो गयी है। देश की राजधानी दिल्ली में 1951 में मुस्लिम जनसंख्या

 5.71 प्रतिशत थी जो अब 11.72 प्रतिशत हो गयी है। इसी संदर्भ में इंटेलीजेंस ब्यूरो के पूर्व 

निदेशक और उत्तर प्रदेश के वर्तमान राज्यपाल टी.वी. राजेश्वर ने 1996  में लिखा था कि पूर्वी 

भारत में तीसरे इस्लामिक राज्य का  नक्शा उभर रहा है। इतना ही नहीं सम्पूर्ण देश में जहां भी 

मुस्लिम जनसंख्या बढ़ जाती है उसे प्रशासन संवेदनशील मानने लगता है। इस कारण हिन्दुओं 

के आयोजन वहां नहीं हो सकते। रामायण कथा या प्रवचन को आयोजित करने में

 आयोजकों को काफी अड़चनों का सामना करना पड़ता है। 


पुलिस ‘सेन्सिटिव प्लेस’ कहकर इनसे बचने की जुगत में रहती है। फिर भी अल्पसंख्यकों को

 विशेष संरक्षण देने की बात की जा रही है, क्या यह 


चिंताजनक विषय नहीं है?

(from mahendra kushawah- facebook)

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