कई टीवी चैनलों पर दिवाली मनाई जा रही है. अचानक से हर चैनल पर सर्वे की बरसात शुरू हो गई. जिन चैनलों ने अपना सर्वे नहीं किया था वो दूसरे चैनलों के सर्वे को दिखाने लग गए. इस खेल में टाइम्स नाउ और उसके महान संपादक अरनब गोस्वामी सबसे आगे रहे. उन्होंने सारे चैनलों के सर्वे को लेकर उनका औसत निकाल कर अपना दरबार सजा लिया और केजरीवाल को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाने में जुट गए. इन चैनलों का अंदाज ऐसा है कि जैसे चुनाव हो गए और नतीजे भी आ गए और आम आदमी पार्टी भारी बहुमत से चुनाव जीत भी गई. इन सभी चैनलों के “एग्रेसिव” एंकर बीजेपी और कांग्रेस के प्रवक्ताओं के मुंह में वाक्यों को ठूंस-ठूंस कर उन्हें हार स्वीकार करने को मजबूर करते रहे. देश के सारे फर्जी चुनाव-विश्लेषक, जिनकी आज तक कोई भी चुनावी भविष्यवाणी सही साबित नहीं हुई, वो केजरीवाल को जीत की बधाई देने में जुट गए. कुछ टीवी पत्रकारों की यह बीमारी अब सभी चैनल के एंकरों को लग गई है. उन्हें यह भ्रम हो गया है कि टीवी पर होने वाले फर्जी सर्वे और फर्जी विश्लेषण से चुनाव के नतीजों को बदला जा सकता है.
लोकसभा चुनाव में किसी चैनल के सर्वे ने बीजेपी को बहुमत देने की जहमत नहीं उठाई. यही एबीपी न्यूज, एनडीटीवी और टाइम्स नाउ के महान विश्लेषक लगातार “मोदी-लहर” को नकारते रहे. ये इतने महान विश्लेषक हैं कि देश में मोदी नामक सुनामी थी और इन सूरदासों को लहर भी नजर नहीं आ रही थी. टाइम्स नाऊ पर हमेशा अवतरित होने वाली एक एक्सपर्ट तो हिलकोरे मार-मार के कह रहीं थीं कि बनारस में बहुत टफ सिचुएशन है. केजरीवाल की जबरदस्त लहर है और अगर केजरीवाल बनारस से जीत जाएं तो कम से कम उन्हें तो आश्चर्य नहीं होगा. वो बनारस में तीन दिन रहीं. अब इस पर कोई टिप्पणी करना बेकार है कि उनके विश्लेषण का स्तर क्या है? यदि कोई विश्लेषक तीन दिनों तक बनारस में रहने के बावजूद 3 लाख 71 हजार वोट के अंतर को परख न सके तो उनका भगवान ही मालिक है. यही हाल एबीपी न्यूज के एक्सपर्ट्स का है. यहां धक्केबाज लोगों की भरमार है. घोषणापत्र नामक कार्यक्रम में इनके द्वारा बुलाए गए 30 से ज्यादा संपादकों के सामने केजरीवाल एक के बाद एक झूठ बोलता चला गया लेकिन किसी को केजरीवाल का झूठ समझ में ही नहीं आया. अगर आया भी होगा तो किसी ने सवाल नहीं किया और न किसी ने आपत्ति दर्ज की.
भारत में चुनावी सर्वे की सबसे बड़ी हकीकत ये है कि ये कभी सच नहीं होते. भारतीय चैनलों पर दिखाया गया एक भी सर्वे आजतक सही साबित नहीं हुआ है. ये इतने महान लोग है कि इनके द्वारा किया गया एक्जिट पोल का नतीजा भी सही नहीं निकलता, ओपिनियन पोल का सही होना तो दूर की बात है. हाल ही में झारखंड में चुनाव हुआ था. एबीपी न्यूज ने अपने सर्वे में बीजेपी गठबंधन को बहुमत से कम 37 सीटें दी. इस सर्वे में कांग्रेस को 23 और झारखंड मुक्ति मोर्चा को 7 सीट दे गई. चैनल पर मौजूद महान-महान पत्रकार व विश्लेषकों ने इसे ही ब्रह्मवाक्य मान लिया. खुशियां मना ली कि मोदी लहर खत्म हो गई है और बीजेपी को बहुमत नहीं मिलने वाला है. जब नतीजे आए तो ये सर्वे औंधे मुंह गिर गए. चुनाव नतीजे में बीजेपी गठबंधन को बहुमत यानि 42 सीटें मिली. कांग्रेस गठबंधन 6 सीटों में सिमट कर रह गया जबकि सर्वे में 23 सीट दी गई थी. वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा को 19 सीटें हासिल हुई जबकि सर्वे में उन्हें महज 7 सीट दी गई थी. यही हाल आजतक और दूसरे चैनलों पर होने वाले सर्वे का भी रहा. हर चुनाव में ये सर्वे गलत साबित होते हैं और सबसे मजेदार बात यह है कि चुनाव के बाद ये लोग माफी भी नहीं मांगते हैं कि इस बार भी उनका सर्वे झूठा साबित हुआ.
इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली चुनाव के लिए केजरीवाल की पार्टी पिछले 6 महीने से मेहनत कर रही है और कड़ी टक्कर दे रही है. आम आदमी पार्टी को मुफ्त पानी और मुफ्त बिजली के वादे की वजह से झुग्गी झोपड़ी, छोटे व्यवसायी, रेहड़ी-पटरीवाले यानि लोवर-मिडिल और लोवर क्लास का समर्थन मिल रहा है. केजरीवाल के लिए अच्छी खबर ये है कि इस चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस को नकार दिया है. आम आदमी पार्टी को मुस्लिम मतदाताओं का 100 प्रतिशत समर्थन मिलने की उम्मीद है. मुस्लिम मतदाताओं का वोट पिछली बार काफी हद तक कांग्रेस को ही मिला था लेकिन इस बार मुस्लिम वोट बीजेपी के खिलाफ एकजुट यानि पोलाराइज हो चुका है. इससे दिल्ली में तकरीबन 14 सीटों पर केजरीवाल को सीधा फायदा होने वाला है और बाकी सीटों पर औसतन 4-6 हजार मुस्लिम मतदाता है जो सीधे-सीधे आप की झोली में गिरने वाला है. मुसलमानों का समर्थन केजरीवाल को इसलिए मिल रहा क्योंकि मुस्लिम मतदाताओं को लगता है कि आम आदमी पार्टी ही बीजेपी को दिल्ली में रोक सकती है. इसके अलावा, आम आदमी पार्टी को कांग्रेस का वोट भी ट्रांसफर हो रहा है. दिल्ली में कांग्रेस ने उम्मीदवार तो दिए हैं लेकिन वह जमीन पर चुनाव नहीं लड़ रही है. यही वजह है कि आम आदमी पार्टी हर सर्वे में आगे नजर आ रही है.
इसका मतलब यह नहीं कि बीजेपी हार गई है. ये सारे समीकरण, चुनावी अंकगणित और बीजगणित सिर्फ 30-35 फीसदी वोटों की कहानी बता रहे हैं. बाकी की 65 फीसदी जनता चुप है. वो इन चैनलों को भी देख रही है.. देश भी देख रहा है.. दुनिया भी देख रही है और भविष्य के लिए क्या अच्छा होगा उस पर चिंतन कर रही है... क्योंकि जनता अपना आखिरी फैसला 7 फरवरी को देगी जिसका खुलासा 10 फरवरी को होगा.
-Dr. Manish Kumar (Editor, Chauthi Duniya)
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